Book Title: Jain_Satyaprakash 1943 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उमास्वामि-श्रावकाचार लेखक:-पूज्य मुनिमहाराज श्री दर्शनविजयजी, अमदावाद. गुर्जरेश्वर परमाहत महाराजा कुमारपालके गुरु कलिकालसर्वज्ञ आ० श्रीहेमचन्द्रसूरि समर्थ ज्ञानी हुए हैं। आपने सांगोपांग व्याकरण, काव्य, न्याय, चरित्र एवं योग इत्यादि विभिन्न विषयके अनेक ग्रंथ बनाये हैं। आपका स्वर्गगमन वि. सं. १२२९ में हुआ है । आपने " सटीक योगशास्त्र में श्रावकधर्मका विशद निरूपण किया है। आपके बाद विक्रमको तेरहवीं शताब्दीके आ० जिनदत्तसूरिने गृहस्थव्यवहारके निरूपणवाला “ विवेक विलास" रचा है। श्रावकोंके आचार बतानेवाले दिगम्बर शास्त्रोंमें “ उमास्वामि-श्रावकाचार" भी एक है । उसमें ४७४ संस्कृत पद्य हैं, उसकी हिन्दी टीका वि. सं. १९३९ के पश्चात् चंद्रवालकुल गोत्रके पं. हलायुधजीने की है । इस श्रावकाचारमें-विक्रमकी दशौं शताब्दीके आ० अमृतचन्द्रसूरिके पुरुषार्थसिद्धिउपाय, ११ वीं शताब्दीके आ० सोमदेवसूरिके यशस्तिलक. चम्पू , ११ वीं शताब्दीके आ० अमितगतिके उपासकाचार और धर्मपरीक्षा, क० स० आ० श्री हेमचंद्रसूरिके योगशास्त्र, आ० जिनदत्तसूरिजीके विवेकविलास, और वि. सं. १५४१ के पं. मेधावीके धर्मसंग्रहश्रावकाचार इत्यादि कई ग्रन्थोके श्लोक दर्ज हैं। इनमें आ० अमृतचन्द्रसूरि, आ. सोमदेवसूरि, आ० अमितगति और पं. मेधावी ये दिगम्बर विद्वान् हैं अतः यह। उनके लिये तो कुछ कहना नहीं है। क० स० आ० हेमचंद्रसूरिजी और आ० जिनदत्तसूरि ये श्वेताम्बर आचार्य हैं, प्रस्तुत श्रावकाचारके विधाताने इनसे जो कुछ ऋण लिया है, सिर्फ उसे ही यहां बताना है। उमास्वामि-श्रावकाचार, जो तत्वार्थोधिगम अर्हतप्रवचनके निर्माता वा० श्री उमास्वातिजीके नामसे जाहिर है, उसमें कतिपय श्लोक ऐसे हैं जो कि योगशास्त्र और विवेकविलाससे ज्योंकेत्यों लिये गये हैं और कतिपय श्लोक कुछ परिवर्तनके साथ लिये गये हैं। ज्योंकेत्यों लिए हुए पाठ योगशास्त्र उ. श्रावकाचार विवेकविलास उ. श्रावकाचार प्र. श्लोक श्लोक उ० श्लोक श्लोक २-१४ १९ १-१४४ १०३+१०४ २-२९ ३३९ १-१४५ १०४+१ळ५ १०७ ३-६७ ३२६ १०८ ३-[२५] २६४ १. आ० सोमदेवसूरिजी ऐसे प्रन्थकारोंको काव्यचोर एवं पातकीकी उपाधियाँ देते हैं । कृत्वा कृतीः पूर्व कृता पुरस्तात् प्रत्यादरं ताः पुनरीक्षमाणः । तथैव जल्येदथ योऽन्यथा वा, स काव्यचोरोस्तु स पातकी च ॥ -यशस्तिलकचम्पू ॥ अन्यकाव्यसुशब्दार्थछायां नो रचयेत् कविः स काव्ये सोऽन्यथा लोके, पश्यतोहरतामटेत् ॥९५॥-आ० भजितसेनकृत अलंकारचिन्तामणिः ॥ ३-२६ २६५ १-१७८ For Private And Personal Use Only

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