Book Title: Jain Satyaprakash 1940 10
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ ७२ ] + 1 फतेहचंदजी पिता सिद्धान्त अमरचंदजी जन्म निर्वाण www.kobatirth.org શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ राव अमरचंदजी सुराणा का वंशः वृक्ष -: मलूकचंदजी सुराणा + + माणिकचंदजी लालचंदजी केसरीचंदजी T उदैचंदजी कस्तुरचंदजी फूलचंदजी ताराचंदजी + T हुकुमचंदजी + T+ लक्ष्मीचंदजी हरिचंदजी T किसनचंदजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ लालचंदजी, हुकुमचंदजी के दत्तक गये । २ पूनमचंदजी, फतेहचंदजी के दत्तक गये । ३ जयचंदलालजी, उत्तमचंदजी के दत्तक गये । + आपका जीवन चरित्र ईसी पत्र के अगले अंको में प्रकाशिह करने की भावना है । ÷ यह वंश वृक्ष मुझे शाहजी के वंशधर शाह सेंसकरणजी की कृपा से प्राप्त हुआ है । [ पृष्ठ ६९ से चालु ] सिद्धार्थ राजा ૨ उत्तमचंदजी पूनमचंदजी ३ | I जयचंदलालजी सेंसकरणजी (विद्यमान) 1 जतनलालजी (विद्यमान ) स्याद्वाद इ. स. पूर्व ५९९ इ. स. पूर्व ५२७ [ वर्ष For Private And Personal Use Only शुद्धोदन क्षणिकवाद इ. स. पूर्व ६०१ इ. स. पूर्व ५२१ एक माननेवालों की समझने में किसी 1 इससे भगवान महावीर और बुद्धको तथा जैनधर्म एवं बौद्धधर्म को भ्रान्ति दूर हो जायगी और जैनधर्म को प्राचीन एवं स्वतंत्र प्रकार की आपत्ति नहीं आवेगी, क्योंकि वेद और पुराणों के समय भी जैनधर्म का काफी प्रचार था इस बात को वेद और पुराण साबित कर रहे हैं । लेख बढ़ जाने के भय से वे प्रमाण यहां उद्धृत नहीं किये जाते हैं ! यदि किसीको देखना हो तो मेरी लिखी “जैन जाति महोदय" नामक पुस्तक को देखे । इस लेख लिखने में मेरा लक्षबिन्दु उन भ्रांतात्माओं का भ्रम मिटाने का ही है जोकि जैनधर्म और बोद्धधर्म को या भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध को एक बतलाते हैं । अतः मेरे इस लेख से प्रत्येक व्यक्ति जैनधर्म को स्वतन्त्र एवं प्राचीन ही मानेगा ।

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