Book Title: Jain Satyaprakash 1940 10
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'पंजाब में जैनधर्म' शीर्षक लेख में संशोधन लेखक-श्रीयुत पन्नालालजी दुगड श्री जैन सत्य प्रकाश' के क्रमांकों ५३-५४ ( संयुक्त ) ५५, ५६ में विद्वद्वर मुनिराज श्री दर्शनविजयजी की उक्त लेखमाला प्रगट हुई है । मैं पिछले दो अंकों में वर्णित विषय के बारे में कह सकता हूं कि उनमें अनेकों ऐतिहासिक स्खलनाएं हुई हैं जिनपर सप्रमाण लिखने के लिए स्थानाभाव है । अतः मैं यहॉपर केवल १७ वीं शताब्दी की ही कुछ मुख्य मुख्य स्खलनाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालने का प्रयत्न करता हूं: (१) जगद्गुरु श्री होरविजयसूरिजी की विद्यमानता में सम्राट अकबर ने जो हिंसा वंद की थी वह १०६ दिन की थी । यथाः-१२ दिन पर्युषणा के, ४८ दिन रविवार के, १८ दिन फर्वर्ददीन महीने के प्रारंभिक दिन और २८ दिन अकवर के जन्ममास आवान महीने के ( वैराट की प्रशस्ति और बदायुनी की तवारीख )। शेष हिंसा उपाध्याय श्री शान्तिचंद्रजी के प्रयत्न से बंद हुई थी (जैन ग्रन्थ, आइने अकबरी, बदायुनी की तवारीख)। ईद की हिंसा बंद होने के विषय में यह समझलेना चाहिए कि वह रोजों की ईद थी न कि बकराईद। (२) जगद्गुरुजी के चार चौमासे आगरा, फतहपुर सीकरी, अभिरामावाद ( इब्राहीमावाद ) और आगरा में हिं. सं. १६४० से १६४३ तक हुए थे ( देखो पट्टावली समुच्चय पृ. ७५, श्राविजयप्रशस्ति-काव्य सर्ग ११ काव्य पहले की टीका)। 'सूरीश्वर और सम्राट् में सं. १६४२ के उल्लेख को गुजराती गणना का समझकर कुछ का कुछ लिख दिया उसीका अनुकरण आपने भी किया परन्तु श्री हीरविजयसूरिरास से भी इसी क्रम से चौमासे हुए थे ऐसा प्रतीत होता है। उपाध्याय श्री भानुचन्द्रजी के विषय में । (३ सम्राट अकबर के पास से श्री हीरविजयसूरिजी गए उसका वर्णन करते हुए आपके चरित+ में निम्न प्रकार का उल्लेख है: " वर्वाश्चतस्तदेशे प्रविधाय प्रतस्थिरे । शान्तिचन्द्रमुपाध्यायं तत्र मुक्त्वाऽथ सूरयः ॥ १२५ ॥ + श्रीयुत मोहनलाल दलीचन्द देसाईजी ने “ उपाध्याय श्रीभानुचन्द्रचरित" के छपे हुए फर्मे मेरे पास मेरी प्रार्थना से भेजे हैं उसके आधार से ही इस लेख में सब जगह लिखा है। For Private And Personal Use Only

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