Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj Author(s): Mohan Chand Publisher: Eastern Book Linkers View full book textPage 2
________________ ग्रन्थ परिचय इतिहास के लक्ष्य प्राज बदल चुके हैं। अब इतिहास जन-जन की आकांक्षानों तथा भावनाओं का प्रतिलेखन करता है, केवल राजवंशों के उत्थानपतन का नहीं। इन बदले हुए इतिहास मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पिछले चार-पांच दशकों से लोकमूल्यों से अनुप्राणित साहित्यिक स्रोतों के माध्यम से सामाजिक इतिहास लेखन की जो एक नवीन विधा अस्तित्व में आई है उसमें जैन साहित्य का भी ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष योगदान रहा है। अधिकांश जैन साहित्य किसी राज्याश्रय में नहीं अपितु लोकचेतना एवं जनसामान्य की अनुभूतियों से प्रेरित होकर निर्मित हुआ है। प्रस्तुत ग्रन्थ में आठवीं से चौदहवीं शताब्दी तक रचित जैन संस्कृत महाकाव्यों के आधार पर मध्यकालीन भारतीय समाज के विविध पक्षों का विवेचन हुअा है । ग्रन्थ को नौ अध्यायों में विभक्त किया गया है जो इस प्रकार हैं : १. साहित्य, समाज और जैन संस्कृत महाकाव्य २. राजनैतिक शासन तंत्र और राज्य व्यवस्था, ३. युद्ध एवं सैन्य व्यवस्था, ४. अर्थव्यवस्था एवं उद्योग व्यवसाय, ५ प्रावास व्यवस्था, खानपान तथा वेशभूषा, ६ धामिक जनजीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं, ७. शिक्षा, कला एवं ज्ञान विज्ञान, ८ स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था तथा ९. भौगोलिक स्थिति । _दिल्ली विश्वविद्यालय की पी-एच० डी० उपाधि के लिए प्रस्तुत किया गया तथा आधुनिक समाजशास्त्रीय मूल्यों के प्ररिप्रेक्ष्य में लिखा गया यह शोध प्रबन्ध इस तथ्य को रेखाङ्कित करता है कि भारतवर्ष के मध्यकालीन इतिहास को जानने के लिए जैन संस्कृत महाकाव्यों की सामग्री कितनी महत्त्वपूर्ण है। ये महाकाव्य सामाजिक इतिहास के विविध पक्षों पर नवीन प्रकाश डालने के साथसाथ इतिहासकारों द्वारा प्रचारित अनेक भ्रान्तिया का निराकरण भी करते हैं। लेखक ने 'निगम' सम्बन्धी धारणा की पुनर्समीक्षा की है तथा उसके स्वरूप निर्धारण के क्षेत्र में नवीन ऐतिहासिक तथ्य जुटाए हैं। आशा है, मध्यकालीन इतिहास के विशेष अध्येतानों तथा शोधार्थियों के लिए यह अनुसन्धान कार्य उपयोगी सिद्ध होगा। 2300.00Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 720