Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7 Author(s): Ambalal P Shah Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 5
________________ ( ख भाषा में आमूलचूल परिवर्तन करना भी खतरे से खाली नहीं था । इसलिए भाषा के संबंध में यथास्थिति रखना ही हमें अधिक उचित लगा । कहीं नाम आदि के संबंध में भी मूल लेखकों की अपनी विशिष्टताएं थीं, दूसरे कुछ नामों के संबंध में हमें तमिल एवं कन्नड के लेखकों में भी उच्चारणभेद मिले । अतः कौन-सा सही है, यह निश्चित कर पाना भी कठिन था, ऐसो स्थिति में उन्हें भी यथावत् रखा गया है, जैसे चामुण्डराय के स्थान पर चाउण्डराय । कहीं तमिल एवं कन्नड के लेखकों ने ही एकरूपता नहीं बरती है जैसे वड्डाराधना और वड्डाराधने । इसे भी हमने यथावत् रखा है । यद्यपि ये सब कठिनाइयाँ मराठी विभाग में नहीं हैं । हमारी अपेक्षा यही है कि सुधी पाठक हमें त्रुटियों से अवगत करावें ताकि इन्हें भविष्य में सुधारा जा सके । इस ग्रन्थ के प्रकाशन में यदि हमें जीवन जगन चेरिटेबल ट्रस्ट से आर्थिक सहायता नहीं मिली होती तो संभवतः इसके प्रकाशन में और भी अधिक विलम्ब होता । इस आर्थिक सहयोग के लिए हम उक्त ट्रस्ट के ट्रस्टी मण्डल के अत्यन्त आभारी हैं जिन्होंने इस हेतु हमें पाँच हजार रुपये की धनराशि प्रदान की । हम संस्थान के मंत्री श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन के आभारी हैं जिन्होंने इस प्रकाशन के लिए न केवल प्रेरणा दी अपितु समय-समय पर हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति भी करते रहे । हम डॉ० हरिहर सिंह, श्री जमनालाल जी जैन, शोधछात्र श्री मंगल प्रकाश मेहता एवं श्री रविशंकर मिश्र के भी आभारी हैं जिन्होंने ग्रन्थ की भाषा के सम्पादन तथा प्रूफरीडिंग आदि कार्यों में हमारी सहायता की है । अन्त में हम एजूकेशनल प्रिंटर्स के भी आभारी हैं जिन्होंने इसके मुद्रण कार्य को सम्पन्न किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only -सागरमल जैन निदेशक www.jainelibrary.orgPage Navigation
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