Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 11
________________ [ i ] १०१, कलन १०२, वज्रनन्दी का संघ १०३, तमिल भाषी जैनाचार्य चोळों के पूर्व १०४, चोळों के काल में १०५, तोलकाप्पियम् १०८, पण्णत्ति ११३, तमिल व्याकरण का विकास ११५३ तोलकाप्पियम् और जैन प्रभाव ११६, संघकालीन ग्रन्थ ११९, संघ ग्रंथों पर जैन प्रभाव १२० संघकाल का निर्णय १२१, तिरुक्कुरळ १२३, तिरुवळ्ळुवर और जैन धर्म १२६, तिरुक्कुर के उपदेश १२७ अध्याय २ धर्मग्रन्थ पदिनॅण्कीळ कणक्कु (अठारह धर्मग्रन्थ) १३०, जैन धर्म के विशिष्ट ग्रंथ अरुंकल चॅप्पु और अरनॅरिसारम् १३२, पतिनॅण्कीळ कणक्कु के लक्षण १२३, नल डिनानुरु और पळमॉळि नानरु १३५, चिरुपंचमूलम् और एलादि १३८, पतिनॅण्कीळ कणवकु की अन्य विशेषताएं १४०, धार्मिक और नैतिक लघुकथाएँ १४२ अध्याय ३ काप्पियम् ( महाकाव्य ). - १ अध्याय ४ कापियम् ( महाकाव्य ) - २ १३०-१४४ उसकी काव्य नामकरण १४८, शिलप्पधिकारम् के रचयिता १४५, कथा १४५, शिलप्पविकारम् का कवि का साम्प्रदायिक पक्ष १४९, मणिमेखले १५५, नीलकेशी १५७, वळेयापति १५९, पेरुं कथै १६० रचनाकाल १५१ Jain Education International १४५ - १६२ For Private & Personal Use Only जीवक चिन्तामणि १६३, उसकी काव्यकथा १६३; विशेषताएँ १६५, रचनाकाल १६६, चूळामणि १६९, विशेषताएँ १७१, कथावस्तु १७१, लघुकाव्य - यशोधर काव्य १७४, शान्तिपुराणम् और नारदचरितै १७६, मेरुमन्दर पुराणम् १७६, जैन साध्वी कवयित्रियाँ १७७, कुवन्ती १७७, अब्बै १७८, अन्य १७८, प्रबन्धकाव्य -- कलिगत्तु परणि १७९, भक्ति गीतों की धारा १८१, अन्य जैन ग्रन्थ १८२ १६३ - १८५. www.jainelibrary.org

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