Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ कन्नड साहित्य का आरम्भकाल कन्नड में साहित्य-निर्माण का कार्य कब से प्रारम्भ हुआ यह कहना कठिन है । वन्नड़ के शिलालेख ई० सन् छठी सदी से ही मिलते हैं। इससे पहले के शिलालेख संस्कृत प्राकृत में उपलब्ध हुए हैं। ये शिलालेख गद्य में हैं और आकार में छोटे हैं। एक-दो ही शिलालेख पद्य में मिले हैं। ई० सन् ९वीं सदी के अर्थात् पंपयुग के उत्तरकाल के कन्नड के शिलालेख गद्य-पद्य की काव्यशैलियों में उपलब्ध हुए हैं जो कि आकार में भी बड़े हैं। राष्ट्रकूटनरेश नृपतुंग ई० सन् ८१७ से ८७७ तक शासन करते रहे। इनका कविराजमार्ग ही कन्नड का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ है। इस ग्रंथ से विदित होता है कि कन्नड भाषा में मधुरता, कुंतल देश के कोपण एवं पुलिगेरे की बोली के संपर्क से आयी है । उस समय कन्नड में बेदण्डे, चत्ताण नामके काव्य भेद ही थे और कन्नड में गद्य-पद्य की शैलियों के रचनाकार भी मौजूद थे । कविराजमार्ग में कतिपय कवियों के नाम मिलते हैं और उदाहरण के तौर पर कुछ उद्धरण भी। इस से मालूम होता है कि ई० सन् ९वीं सदी से पूर्व भी कन्नड में ग्रंथ अवश्य रचे गये थे। पंप, पोन, रन आदि जैन महाकवि १०वीं सदी में हुए हैं। पर इनकी कृतियों से पूर्ववर्ती रचनाओं पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता। ये किसी पूर्ववर्ती रचनाकार का उल्लेख भी नहीं करते । केवल पोन्न असग नाम के कवि का उल्लेख करता है । पंप ने बड़े गर्व से अवश्य कहा है कि मेरी रचनाओं की तुलना में पूर्ववर्ती काव्य नीरस हैं। उसने आत्मविश्वास के साथ यह भी घोषित किया है कि पूर्व का कोई कवि महाभारत का समीचीन वर्णन करने में समर्थ नहीं हुआ है। पंप-प्रणीत विक्रमार्जुनविजय में महाभारत के समस्त उपाख्यान वर्णित हैं, जबकि रन-रचित गदायुद्ध एक उपाख्यान पर ही आधारित काव्य है । अतः यही अनुमान लगाया जा सकता है कि पंप पूर्व-युग में कन्नड में महाभारत की कथा पर आधारित कोई उल्लेखनीय काव्य नहीं था। पर नृपतुंग के उद्धरणों से यह निष्कर्ष निकलता है कि आरंभिक युग में कोई राम-काव्य अवश्य रहा होगा। कन्नड में ईसा की छठी शताब्दी से पहले न कोई शिलालेख था, न कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 284