Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 15
________________ कन्नड जैन साहित्य का इतिहास रचना थी और न कोई अन्य प्रकार के लेख ही थे। यह कहना कठिन ही है कि नृपतुंग की रचनाओं में जिन कवियों का उल्लेख किया गया है वे इससे पूर्वकाल के थे और उस काल में अपनी काव्य-रचना किया करते थे। उनकी रचनाएं प्रायः परिमाण अथवा गुण की दृष्टि से ऊँचे स्तर की नहीं रही होंगी। दण्डी के अलंकारग्रंथ के आधार पर नृपतुंग ने कविराजमार्ग लिखा था। इसमें संदेह नहीं है कि पंप की रचनायें परवर्ती कवियों के लिए आदर्श कृतियां सिद्ध हुई। अतः कन्नड के आदिकवि का सम्मान पंप को प्राप्त है। भाषा के विकास की दृष्टि से भी यही स्थिति है। कहा जाता है कि द्रविड परिवार से तेलुगु पहले ही अलग हो गई। तमिल, कन्नड और मलयालम ये तीनों भाषायें कुछ समय तक साथ थीं। बाद में ये भी स्वतंत्र हो गई और स्वयं अपनी अलग सत्ता बनाने लगीं। लगभग ई० सन् पांचवीं-छठीं सदी में कन्नड भाषा स्वतन्त्र हुई होगी और कन्नड प्रदेश के नरेश इसे प्रोत्साहन देने लगे होंगे । परन्तु विद्वानों की राय है कि ईसा से पूर्व ही बनवासि में कन्नड का कोई रूप अवश्य प्रचलित रहा होगा। कहा जाता है कि दूसरी सदी के एक यूनानी नाटक में कन्नड वाक्य उपलब्ध होते हैं। किन्तु नृपतुंग द्वारा दिये गये उद्धरणों से भी स्पष्ट है कि उस युग में कन्नड भाषा अनगढ़ ही थी। इसमें संदेह नहीं है कि कन्नड साहित्य प्रारम्भ से ही संस्कृत साहित्य से स्फूर्ति ग्रहण करता आया है। कन्नड पर संस्कृत भाषा का प्रभाव भाषा तथा साहित्य दोनों दृष्टियों से निर्विवाद है। अब यह धारणा भी पुष्ट होती जा रही है कि लगभग छठीं सदी से पहले कन्नड में ग्रंथ-निर्माण नहीं हुआ होगा। नुपतुंग के शासनकाल तक आते-आते संस्कृत-साहित्य ह्रासोन्मुखी हो उठा था। हाँ, उस समय महाभारत, भागवत, हरिवंश, रामायण और विभिन्न पुराण आदि ग्रंथ सुविख्यात थे । शिक्षित समाज में कालिदास, भारवि, माघ, भवभूति, भट्टनारायण, भर्तृहरि, बाण और सुबंधु जैसे कवि एवं भरत, दण्डी, वामन आदि आलंकारिक सुपरिचित हो गये थे। उस युग में संस्कृत की स्फूर्ति और प्रोत्साहन से कन्नड भाषा रूपी बालिका भावभंगिमाओं के साथ नाचने लगी थी। नृपतुंग और पंप की देख-रेख में वह बालिका उत्तरोत्तर बढ़ी। इनकी रचनाओं में संस्कृत की भरमार ही इसका पुष्ट प्रमाण है। नृपतुंग गद्य-शैली के लिए बाण-विरचित हर्षचरित, कादम्बरी आदि को आदर्श बताते हैं। इसी प्रकार पद्य-शैली के लिए वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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