Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7 Author(s): Ambalal P Shah Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ७ को पाठकों के हाथों में प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। वस्तुतः इसका प्रकाशन एक दशक पूर्व ही हो जाना था, किन्तु कुछ अप्रत्याशित कारणों से इसके प्रकाशन में विलम्ब होता गया। यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि इस जैन साहित्य के बृहद् इतिहास के कन्नड विभाग के लेखक पं० के० भुजबली शास्त्री आज इस प्रकाशन को देख पाने के लिए हमारे बीच नहीं रहे। ____ इस खण्ड के अन्तर्गत हमने दक्षिण भारतीय भाषाओं में रचित जैन साहित्य का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया है। इसके तीन उपविभाग हैं। जिनमें क्रमशः कन्नड, तमिल और मराठी जैन साहित्य की कृतियों और कृतिकारों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की गई है। तमिल एवं कन्नड जैन साहित्य के सम्बन्ध में यद्यपि अंग्रेजी भाषा में कुछ पुस्तकें लिखी गई हैं किन्तु हिन्दी भाषा में अभी तक कोई भी पुस्तक नहीं लिखी गई है। मात्र यत्र-तत्र कुछ लेख प्रकाशित अवश्य हुए, अतः इस दृष्टि से इस दिशा में यह प्रथम प्रयास है। इस सम्बन्ध में हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। मूल कठिनाई तो तमिल एवं कन्नड विभाग के लेखकों के सम्बन्ध में ही थी। तमिल विभाग को तमिल में लिखवा कर फिर हिन्दी में अनुवाद करवाना पड़ा, किन्तु यह अनुवाद भी तमिल भाषी ने ही किया है। कन्नड विभाग यद्यपि हिन्दी में लिखा गया फिर भी तमिल के अनुवादक एवं कन्नड विभाग के लेखक हिन्दीभाषी नहीं होने के कारण ग्रन्थों की भाषा में वाक्यविन्यास, विभक्ति आदि की दृष्टि से उनकी मातृभाषाओं का स्पष्ट प्रभाव आ गया है। यद्यपि हमने भाषा को यथासम्भव संशोधित करने का प्रयास किया फिर भी भाषा में अपेक्षित कसावट एवं एकरूपता आना तब तक संभव नहीं था जब तक कि इसका पुनर्लेखन नहीं होता। हमारी अपनी कठिनाई यह थी कि हम कन्नड एवं तमिल साहित्य भाषा एवं उच्चारण शैली से ही अपरिचित थे। लेखकों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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