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खमर्पण
ॐ
श्री मोती बहिन को
*
जिसके
आन्तरिक अनुराग और आत्मिक अर्पण पूर्वक समुचित संराधनके कारण मेरे प्रव्रज्यावसित परंतु प्रज्ञावभासित दोलायमान जीवनकी खण्डकथाका उत्तरार्द्ध
कुछ सुबद्ध और सुश्लष्ट हो कर प्रशस्ति-प्रायोग्य
बन सका और
जिसके सन्तत स्नेहसिंचनसे मेरे हृदयकी गंभीर गुफा में प्रवचनोपासनारूप
प्रदीपकी प्रभाका प्रशान्त प्रकाश अपरिक्षीण स्वरूपमें
रह सका
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