Book Title: Jain Pustak Prashasti Sangraha 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 12
________________ Jain Education International खमर्पण ॐ श्री मोती बहिन को * जिसके आन्तरिक अनुराग और आत्मिक अर्पण पूर्वक समुचित संराधनके कारण मेरे प्रव्रज्यावसित परंतु प्रज्ञावभासित दोलायमान जीवनकी खण्डकथाका उत्तरार्द्ध कुछ सुबद्ध और सुश्लष्ट हो कर प्रशस्ति-प्रायोग्य बन सका और जिसके सन्तत स्नेहसिंचनसे मेरे हृदयकी गंभीर गुफा में प्रवचनोपासनारूप प्रदीपकी प्रभाका प्रशान्त प्रकाश अपरिक्षीण स्वरूपमें रह सका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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