Book Title: Jain Parampara me Swadhyaya Tapa
Author(s): Damodar Shastri
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 5
________________ दिगम्बर ग्रन्थों में वाचना के चार प्रकार इस प्रकार बताए गए हैं- (१) नन्दा, (२) भद्रा, (३) जया, (४) सौम्या | ३६ नन्दा अन्यदर्शनों को पूर्व पक्ष के रूप में उपस्थापित कर स्व (जैन) मत को सिद्धान्त रूप में उपस्थापित करने की वाचना 'नन्दा' है। ३७ भद्रा - युक्तिपूर्वक समाधान कर पूर्वापर-विरोध को हटाते हुए समस्त पदार्थों की व्याख्या 'भद्रा वाचना' है । सूत्रार्थका पूर्वापर - संगित के साथ अपने लिए ज्ञान से, तथा दूसरों के लिए वचनों से निर्गमना (निर्यापना = अर्थ - निरूपणा) वाचना- सम्पद कही जाती है। ३८ जया - पूर्वापर-विरोध - परिहार के बिना सिद्धान्त - अर्थों का कथन 'जया' वाचना है। ३९ सौम्या 'सौभ्या' है।' ४० - (१) (२) (३) (४) (4) (६) ४१ 'वाचना' की स्थिति में शिष्य को मान, क्रोध, प्रमाद, आलस्य आदि से रहित होना चाहिए । गुरु द्वारा वाचना (अध्यापन) के निम्नलिखित लाभ शास्त्रों में वर्णित हैं - श्रुत (शास्त्र ) का संग्रह (शास्त्र - ज्ञान भण्डार में वृद्धि ) । शास्त्र ज्ञान से उपकृत शिष्य के मन में शास्त्र सेवा करने की भावना का प्रादुर्भाव । श्रुत की उपेक्षा के दोष से सुरक्षा, श्रुत के अनुवर्तन से अनशातना - ज्ञान का विनय । ज्ञान प्रतिबन्धक कर्मों की निर्जरा, संस्कार क्षय । चरम साध्य की उपलब्धि । वाचना का फल (61) ३६. ३७. ३८. ३९. ४०. ४१. ४२. - ४३. कहीं-कहीं स्खलनपूर्ण वृत्ति से, ( थोड़ा-थोड़ा भाग छूते हुए) की जाने वाली वाचना Jain Education International रत्नत्रय (सम्यग्दर्शनादि) की संसिद्धि । (८) मिथ्यात्व का नाश एवं सत्य को प्राप्त करने की तीव्र जिज्ञासा वृत्ति का उदय । ४३ - अभ्यस्त शास्त्र में स्थिरता । निरन्तर शास्त्र - वाचना से 'सूत्र' को विच्छन्न न होने देना । फलतः तीर्थधर्म का अवलम्बन - धर्मपरम्परा की अविच्छिन्ता । ४२ धवला ९.४.१.५४५ वही, पूर्वोक्त। उत्त. १.५८ नियुक्ति शांति सूरि वृत्ति । वहीं पूर्वोक्त। वहीं, पूर्वोक्त। उत्त. ११.३ । स्थानांग ५.३.५४१ । वायणा एवं भंते किं जणाय ? निज्जर जणाय । सुयस्य अणासायना एवम् सुयस्य अणासायणाए । (८६) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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