Book Title: Jain Kriya Kosh Author(s): Daulatram Pandit Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 3
________________ श्रीवर्धमानाय नमः । स्वर्गीय पण्डित दौलतरामजी विरचितः जैन - क्रियाकोष -∞∞∞∞∞∞∞∞∞~~ मंगल । दोहा -- प्रणमि जिनंद मुनिंदको, नमि जिनवर मुखवानि । क्रियाकोष भाषा कहूं, जिन आगम परवानि ॥१॥ मोक्ष न आतम ज्ञान बिन, क्रिया ज्ञान बिन नाहिं । ज्ञान विवेक बिना नहीं, गुन विवेकके माहिं ॥२॥ नहि विवेक जिनमत बिना, जिनमत जिन बिन नाहिं । मोक्षमूल निर्मल महां, जिनवर त्रिभुवन माहिं ॥३॥ तातें जिनको बंदना, हमरी बारं बार । जिनतें आपा पाइये, तीन मुवनमें सार ||४|| दीप अढ़ाईके विषै सौ ऊपर सत्तार सबै जिनमें उपजे जिनवरा, व्रत विधान 1 आरज क्षेत्र वृत्तभूमि अनूप शुभरूप ||५|| निरूप | वे जिनभूप ॥ ६ ॥ भुवनेस । फाइ इक इक क्षेत्रमें, इक इक उतकृष्टे सब सन्तरि सौ ऊपरें, तिनमें महा विदेहमें, अस्सी दूण असेस 4 "Page Navigation
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