Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 2
________________ ग्धुकर मुनिजी द्वारा लिखित और श्री 'सरस' जी द्वारा न कथामाला के कुछ भाग आचार्य सम्राट ने देखे । प्रथम महान सतियों का जीवन और तीन मग्रिम भाग में २४ जीवन चरित्र बड़ी ही रोचक और प्रवाहपूर्ण भाषा में लिखा की विशेषता यह है कि इनमें इतिहास की प्रामाणिकता के याओं की रोचकता भी कमाल की है । -आचार्य श्री मानन्दऋषि यामाला के छ: भाग देखकर प्रसन्नता हुई । सरसरी तौर पर मांजल और कथात्मकता आकर्षक है । अक्षय-जैन कया-सागर प्रकार मणियां चुनी जाय तो एक बहुमूल्य हार तैयार हो ही ___-उपाध्याय अमरमुनि नि क्रिया का संगम जिसमें, भरा हुआ तप, त्याग । जैनकथामाला" के अद्भुत, देखे हैं कुछ भाग । नव्य भाव हैं जैसे ऊँचे, ऊँची वैसी भाषा । इसको कहें सुयोग न क्योंकर, कौस्तुभ-कांचन का सा । लेखक हैं श्री "मधुकर" मुनिवर, श्रमण संघ हितकारी । संपादक "श्रीचन्द" सुराना, कलम-कलाधर भारी । कथा-कहानी की न पुस्तक, एमी अन्य लखाई । "चन्दन-मुनि" पंजाबी देता, द्वय को मधुर बधाई । -चन्दन मुनि (पंजाबी) जैन कथा साहित्य के प्रति बचपन से ही मुझे रुचि है। आप द्वारा प्रेपित ६ पुस्तकें पढ़कर तो मन परिप्रीणित हो गया। कथाओं में सजीवता और प्रेरणा है । कुछ चरित्र तो ऐसे हैं जिन पर अच्छे खण्ड काव्य लिख जा सकते हैं । मेरी हार्दिक बधाई ! -रामधारीसिंह 'दिनकर' (स्व० राष्ट्रकवि) जैन कथामाला के पृष्ठ पलटते-पलटने सात्विक रसोद्रेक हुआ, महान चरित्र हमेशा ही महान प्रेरणायें देते है । बालक, युवक, वृद्ध महिलायें उन पुस्तकों को पढ़कर मनोरंजन के साथ-माथ मनोमन्यन भी करेंगे। -डा० रामकुमार वर्मा

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