Book Title: Jain Digest 1994 06 Special Issue Author(s): Federation of JAINA Publisher: USA Federation of JAINAPage 49
________________ जागृति ही जीवन है - आचार्य सुशील कुमार जीवन एक जागृति है,एक स्फुरणा है, जो अंधेरे को दूर करने में कितनी और कितनी देर तक समर्थ है, यह कहना तो मुश्किल है लेकिन उससे जीवन का अंधेरा दूर होता है। यह सही है। जागृत जीवन अंधेरे में प्रकाश की ज्योति जलाता है। उस प्रकाश द्वारा डुबते हुए लोगों को सहारा मिलता है। जीवन की वास्तविकतल का दर्शन होतो है और आध्यात्मिक गहराइयों में डुबकियाँ लगाने वाले को अनुभूतियाँ भी प्राप्त होती हैं। आप सब उस अर्हत ध्यान परम्परा को जानें जिसमें मनुष्य देहातीत या विचारातीत हो जाय। ध्यानी एक परा अवस्था में चला जाता है वह अवसथा ऐसी है जहाँ जाकर मनुष्य लौट कर नहीं आना चाहता चूंकि वहाँ जाने के बाद फिर आने की इच्छा और आकाक्षां ही समाप्त हो जाती है। मनुष्य के जीवन का उद्देश्य है कि धीरे धीरे तिल तिल कर जलकर भी संसार को प्रकाश देने वाले दीपक की तरह समाज को वह अर्पित हो जाये। दीपक स्वयं जलकर लोगों का अधंकार तो मिटाता ही है कि स्वयं जलकर भी उसको कुछ करना नहीं होता है लेकिन उसके प्रकाश में स्वतः ही अंधेरा मिट जाता है। अंधेरा मि४ने के बाद अंधेरे में पलने वाले पाप स्वयः पलायन कर जाते हैं। यानि उसके जीवन से बुराइयाँ दूर हो जाती हैं। मेरा समस्त जीवन साम्पदायिकता के विरुद्ध रहा। मैंने जैन धर्म का असाम्पदायिक रूप से पचार किया और उसका लाभ यह हुआ कि विश्व में जैन धर्म का नाम फैला। जैन आचार विचार की मुख्य धुरी अहरत है। अर्हत का अर्थ है - परम पावन ज्योतिर्मय जीवन। अर्हत भगवान का दर्शन कर मनुष्य अपने आप को पा जाता है। जो मनुष्य अपने आप को पा जाता है वह भगवान को पा लेता है। अपने आप का जो विस्तार है, वह इतना कि छोटे से छोटे जीव में भी परमात्मा का दर्शन करता है वह किसकी हिंसा करेगा, किससे झूठ बोलेगा, किसकी चोरी करेगा,किससे व्यभिचार करेगा, किसका लोभ करेगा। उसके राग और द्वेष के बन्धन स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं। आप ध्यान की तरफ जाइये। प्रेम की तरफ जाइये। प्रेम और ध्यान के द्वारा मनुष्य अपनी कलुषता को धो सकता है इसमें कोई शंका नहीं। इस ५० वर्ष के परे साधना काल में मैंने पाया कि जीवन एक ज्योति है, अंधेरा मिटाती है इससे लोग लाभान्वित होते हैं। तिल तिल जल कर सब के लिए समर्पित हो जाने में ही ज्योति की सार्थकता है। वैसे ही सेवा समर्पण भाव अपनाकर जब मनुष्य अनुभूति परक हो जाता है और सब में समाहित हो जाता है तो परम अवस्था को प्राप्त कर लेता है। आप सबको परम अवस्था मिले। यही शुभ कामना है, आनन्द है। Jain Digest June 1994 Page 47 Jain Education Interational 2010_02 nternational 2010_02 For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Oni www.jainelibrary.orgPage Navigation
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