Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 2 Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरतवासी जैन सवेरी भुरियाभाई जीवणचंदनुं जीवनचरित्र. जन्म मरण वि. सं. १९२४ भाद्रवा सुदि १३ वि. १९८० चैत्र सुदि ११ लग्न छन्वीशमा वर्षे. झवेरी मुरियाभाई जीवणचंद्रनु नाम गुजरात जैन कोममा जाहेर प्रसिद्ध थयुं छे. तेमना नाना भाइयो अने भत्रीनाओथी तेमनुं कुटुंब सुरतमा जाहेरमां आव्युं छे. तेओ स्वभावे दयालु, सत्यवादी, मिलनसार, परोपकारी अने नीतिना आचरणथी प्रमाणिक व्यापारी तरीके यशकीर्तिने पाम्या छे. देव, गुरु, धर्मनी श्रद्धामा पक्का हता. जीवदयाना कार्यमा सर्व युवकोने स्वमित्रोने पोतानी साथे जोडी हजारो लाखो रुपैयानां फंडो करीने अग्रगण्य तरीके भाग लेता हता, धर्मशास्त्रो छपाववां तेओ मदद करता हता, तेमणे सुरतमा एक जैनधर्मशाळा बंधावी छे के जे धर्मशाळानी घणी जरुर हती. तेमणे धर्मशाळा बंधाववामां रु. ६५०००) पांसठ हजार रुपैया खर्ध्या हता अने धर्मशाळानुं नाम पोताना पिताना नामे जीवन निवास पाड्यु छे. तेमणे पानसर श्री महावीर प्रभु, देरासर तीर्थ अने धर्मशाळाओ वच्चोवच एक टावर बंधाव्युं छे अने तेनुं नाम कंकुवाइ टावर पाड्युं छे अने तेमां . रु.२००००) आशरे वीशहजार रुपैया खर्चाया छे. झवेरी मुरियामाइनी इच्छा आदर्श उझमणुं करवानी हती. वि. १९८० ना वैशाख मासमां उझमणुं करवा मुहूर्त आव्युं हतुं अने उनमणुं करवानी सर्व सामग्री भेगी करी हती पण पालीताणा सिद्धाचल डुंगर पर जतां तेमना पगे वाग्युं अने एमांथी दर्द वधी पड्युं. ते पर ओपरेशन कराव्युं पण उलटी तेथी वेदना वधी अने घणुं लोही वही गयुं For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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