Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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(९)
नथी. अमो जे जे गाममां चोमासं करीए छीए त्यां ते आवी जता अने पाठशाला लायब्रेरी पांजरापोळ गरीब मनुष्यो अने देरासरोमां सेंकडो रुपैया आपी जता. रामनी साथे जेम सीता हती तेम तेमनी साथे तेमनी स्त्री हता, तेमणे पोताना पतिने धर्मदान पुण्यकार्यमां घणी महाय आपी छे अने धर्मकार्यमां अर्धांगना तरीके श्राविकाधर्म पाळीने सारो भाग लीधो छे. भुरियामाइ वैरागी मनवाळा हता. अने स्वभावे आनंदी हता. प्रभु जिनेश्वरनी पूजामां गांडा गहेला जेवा भक्तिनी धूनमां थई जता अने दुनियानुं भान भूली जता हता. साधु.
ओने अने साध्वीओने आहारपाणी वहोराववामां अत्यंत रुचिवाळा हना. मांदा साधुओनी सेवा करवामां हजारो रुपैया खर्च करवामां उत्साही चढता भाववाळा हता. तेओ अनेक संतसाधुओना समागममां आव्या हता. दरेक गच्छना साधुओने गुणानुरागे पूजता हता. व्यापारमा प्रमाणिक होइ लक्षाधिपति थया हता. तेओ धर्मकार्यमां अमारी सलाह लेइ प्रवर्तता हता. तेमना समागमथी चंपकलाल तथा तलकचंद वगेरे सारा मार्गे चढ्या छे, तेओ कुटुम्ब सगांव्हालांओर्नु हित करवामां सावधान हता. तेमना घरमां कुटुम्ब क्लेशनो अभाव हतो, एम कहेवामां अतिशयोक्ति नथी. स्वभावे शांत हता तेथी तेओना पासमां अनेक मित्रो रहेता हता. झवेरी जीवणचंद धर्मचंद तेमना मित्र हता. झवेरी भुरीयाभाई पोताना मित्रोने यथाशक्ति सहाय करता हता. तेमणे शत्रंजय वगेरे अनेक तीर्थोनी यात्रा करी हती, प्रतिवर्षे शत्रुजय तीर्थनी यात्रा करता हता. भुरियामाइ प्रेमाळ हता. एकवार तेमना समागममां जे आव्यो तेनो तेमना पर प्रेम थइ जतो. झवेरी भुरियामाइ जीवणचंद्रनो सातधातुनो देह गयो पण तेमनो यशःकीर्तिरुप अक्षरदेह तो घणा वर्ष सुधी जीवतो रही वाचकोने आदर्शजीवन दृष्टांतीभूत थशे. झवेरी भुरियाभाइ दाताररत्न तरीके प्रसिद्ध थइ गया छे, तेमने पुत्र
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