Book Title: Jain Dharma me Atmavichar Author(s): Lalchand Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 4
________________ अशुद्ध हैं जो, कामभाले मेवेमं brahamans शुद्ध हैं, जो कामभाज आत्मानमेवेमं Brahmans वेधन बेधन ब्देष होती है अपने परिशेषादात्मकर्यत्वात् होती है। अपने परिशेषादात्मकार्यत्वात् * * * * * * * + * * * * * * 6 9 3 6 : 9 * * * * * * * * २४ २५ नारमास्त्रि नात्मास्ति कर्मश्लेभिसंस्कृतम् क्लेशकर्माभिसंस्कृतम् मिद्यते भिद्यते पाणा पुण ते पाणा समस्त सम्मत ओर और ने जैन जैन बतलाई गयी बतलाया गया आत्मा आत्मा को मानने मानते मोक्ता भोक्ता वैशेशिक वैशेषिक की है। प्रतीतिनस्याद् प्रतीतिर्नस्याद इत्यादि इन्द्रियादि चलनायोगादहमशयवानहं चलनायोगादहमशनायावानहं वाद बाद अमान अनुमान ३२ ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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