Book Title: Jain Dharma me Atmavichar
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 12
________________ विषय-सूची पहला अध्याय : भूमिका : भारतीयदर्शन में आत्म-तत्व भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व सम्बन्धी चिन्तन की मुख्यता ( १ ); ऋग्वेद तथा उपनिषदों में आत्मा विषयक विचारों की आलोचनात्मक दृष्टि ( २ ) ; उपनिषदों में आत्मा सम्बन्धी विचारों के विविध रूप ( ७ ) ; उपनिषदों में आत्मा और ब्रह्म की अवधारणाओं का बराबर महत्व (१०); दार्शनिक निकायों में आत्मचिन्तन (१३) - अद्वैत वेदान्त तथा सांख्य, न्याय-वैशेषिक और प्रभाकर मीमांसक, जैन दर्शन का मत (१३); वैदिक अथवा हिन्दू दर्शन में आत्म-चिन्तन (१४); न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, मीमांसा, अद्वैत वेदान्त, विशिष्टाद्वैत, बौद्ध दर्शन में आत्म-चिन्तन (१६); जैन दर्शन में आत्म-तत्त्व विचार (१८); अजीव तत्त्व जीव तत्त्व (१९); जैन दर्शन में आत्मा की अवधारणा और अन्य दर्शनों से भेद ( २० ) ; आत्मा द्रव्य है ( २१ ) ; आत्मा अनेक है (२३); जैन और अन्य भारतीय दर्शनों में आत्मा विषयक भेद : जैन और बौद्ध दर्शनसम्मत आत्मा में भेद (२४); जैन और वैदिक दर्शन में आत्म-विषयक भेद : जैनसम्मत आत्मा की न्याय-वैशेषिक आत्मा के साथ तुलना (२५); सांख्य- योग की आत्मा के साथ तुलना ( २६ ) ; मीमांसा - सम्मत आत्म-विचार से तुलना (२९); अद्वैत वेदान्त सम्मत आत्म- विचार के साथ तुलना (३१); विशिष्टाद्वैत वेदान्त दर्शन के साथ तुलना (३२); मोक्ष का अर्थ आत्म-लाभ ( ३३ ) ; अद्वैत वेदान्त : विशिष्टाद्वैत वेदान्त ( ३५ ) ; आत्मा का अस्तित्व, आत्मा का स्वरूप, कर्मविपाक एवं पुनर्जन्म, बन्धन और मोक्ष ( ३७ ) आत्म- अस्तित्व-विमर्श : चार्वाक दर्शन का अनात्मवाद (३८); शरीरात्मवाद ( ३९ ) ; इन्द्रियात्मवाद (४०); मानसात्मवाद ( ४२ ) ; प्राणात्मवाद (४३); Jain Education International पृष्ठ- संख्या १-६६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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