Book Title: Jain Dharma ka Prachin Itihas Part 1 Author(s): Balbhadra Jain Publisher: Gajendra Publication Delhi View full book textPage 2
________________ प्राक्कथन पुराण बनाम इतिहास प्रत्येक संस्कृति, देश और जाति का अपना एक इतिहास होता है । इतिहास तथ्यों का संकलन मात्र नहीं है, अपितु परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में उत्थान और पतन, विकास और भवनति, जय और पराजय की पृष्ठभूमि मौर तथ्य संकलन ही इतिहास कहलाता है। देश मौर जाति के समान व्यक्ति और धर्म का भी इतिहास होता है । वस्तुतः धर्म का इतिहास भी व्यक्तियों का ही इतिहास होता है क्योंकि धर्म धार्मिकों के उच्च नैतिक आचार और प्रदशों में ही परिलक्षित होता है। व्यक्तियों और धर्म के इतिहास का एकमात्र प्रयोजन वर्तमान और भावी पीढ़ी को प्रेरणा देना होता है, जिससे वह भी उन प्राचारों और मादर्शों को जोवन व्यवहार का अभिन्न अंग बनाकर अपने जीवन को उस उच्च भूमिका तक पहुँचा सके। इससे मनुष्य के निजी जीवन में तो शान्ति और सन्तोष का अनुभव होता हो हैं, उसके व्यवहार में जिन व्यक्तियों का सम्पर्क होता है, उन्हें भी शान्ति र सन्तोष की अनुभूति हुए बिना नहीं रहती । इतिहास लेखन की परम्परा प्रति प्राचीन काल से उपलब्ध होती है। किन्तु प्राचीन काल के महापुरुषों का चरित्र जिन ग्रन्थों में गुम्फित किया गया है, उनका नाम इतिहास न होकर पुराण रखा गया है और इतिहास की सीमाङ्कन अवधि और उसके पश्चात्काल के महापुरुषों का चरित्र-चित्रण जिन ग्रन्थों में किया गया है अथवा किया जाता है, उसका नाम इतिहास, इतिवृत्त या ऐतिह्य कहलाता है। यद्यपि पुराण भी इतिहास ही होता है, किन्तु पुराण और इतिहास में कुछ मौलिक अन्तर भी होता है । 'इतिहास केवल घटित घटनाओं का उल्लेख करता है, परन्तु पुराण महापुरुषों के जीवन में घटित घटनाओं का उल्लेख करता हुआ उनसे प्राप्य फलाफल पुण्य-पाप का भी वर्णन करता है तथा साथ ही व्यक्ति के चरित्र निर्माण की अपेक्षा बीच बीच में नैतिक और धार्मिक भावनाओं का प्रदर्शन भी करता है । इतिहास में केवल वर्तमानकालिक घटनाओं का उल्लेख रहता है परन्तु पुराण में नायक के अतीत अनागत भावों का भी उल्लेख रहता है और वह इसलिये कि जन साधारण समझ सके कि महापुरुष कैसे बना जा सकता है । अवनत से उन्नत बनने के लिये क्या-क्या त्याग और तपस्यायें करनी पड़ती हैं। मनुष्य के जीवन निर्माण में पुराण का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है । यही कारण है कि उसमें जनसाधारण की श्रद्धा माज भी यथापूर्ण अक्षुण्ण है।' भारत के प्राचीन जैन, वैदिक और बौद्ध धर्मों में से बौद्ध धर्म में पुराण-साहित्य नहीं मिलता । उसमें जातक नाम से कथायें दी गई है। किन्तु जैन और वैदिक धर्म में पुराण साहित्य विपुल परिमाण में उपलब्ध होता है । वैदिक धर्म में १८ पुराण हैं । ये महापुराण कहलाते हैं । १८ उपपुराण भी हैं। महापुराणों के नाम इस प्रकार हैं- १ मत्स्य पुराण, २ मार्कण्डेय पुराण, ३ भागवत पुराण, ४ भविष्य पुराण, ५ ब्रह्माण्ड पुराण, ६ ब्रह्मवैवर्त पुराण, ७ ब्राह्मपुराण, वराह पुराण, १० विष्णु पुराण, ११ वायु पुराण, १२ प्रति पुराण, १३ नारद पुराण १४ पद्म पुराण, १५ लिंग पुराण, १६ गरुड़ पुराण, १७ कूर्म पुराण और १८ स्कन्द पुराण । वामन पुराण, उपपुराणों के नाम इस प्रकार हैं-१ सनत्कुमार, २ नरसिंह, ३ स्कन्द, ४ शिवधर्म, ५ प्राश्चर्य, ६ नारद ३Page Navigation
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