Book Title: Jain Dharm no Prachin Itihas Part 02
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 175
________________ ( १९५ ) (२६) प्रबल पराक्रमाक्रांत दिल्लीमंडल गुर्जरत्रा सुरत्राण दत्तातप (२७) त्र प्रथित हिंदु सुरत्राण विरुदस्य सुवर्ण सत्रागारस्य षट्दर्श ( २८ ) न धर्माधारस्य चतुरंग वाहिनी वाहिनी पारावारस्य कीर्त्तिधर्मप्र ( २९ ) जापालनसत्यादिगुणक्रियमाणश्रीरामयुधिष्ठिरादिनरेश्वरानुका (३०) रस्य राणा श्री कुंभकर्ण सर्वोर्वीपतिसार्वभौमस्य ४१ विजय (३१) मान राज्ये तस्प प्रसादपात्रेण विनयविवेकधैर्यौदार्य शुभकर्म (३२) निर्मल शीला द्यद्भुत गुण मणि मया भरण भासुरगात्रेण श्री मदहम्मद ( ३३ ) सुरत्राणदत्त फुरमाणसाधुश्री गुणराज संघपतिसाहचर्यकृताच (३४) र्य कारि देवालयाद्याडंबर पुरःसरः श्रीशत्रुंजयादि तीर्थ या त्रेण अजा (३१) हरि पिंडरवाट सालेरादि बहु स्थान नवीन जैनविहार जीर्णोद्धार ( ३६ ) पद स्थापना विषम समय सन्त्रागार नाना प्रकार परोपका र श्री संघ स ( ३७ ) त्काराद्यगण्यपुण्यमहार्थक्रयाणकपूर्यमाण भवार्णव तारणक्षम ( ३८ ) मनुष्य जन्म यान पात्रेण प्राग्वाट वंशावतंस सं० सागर सुत सं० कुर ( ३९ ) पाल भा० कामलदे पुत्र परमाईत सं० धरणाकेन ज्येष्ट भ्रातृ सं० रत्ना भा० (४०) रत्नादे पुत्र सं० लाषा सना सोना सालिंग व भा० सं० धारलदे पुत्र जाज्ञा ( ४१ ) जावडादिप्रवर्द्धमान संतानयुतेन राणपुरनगरे राणा श्री कुंभकर्ण (४२) नरेंद्रेणस्वनाम्नानिवेशित तदीयसुप्रसादादेशत स्त्रैलोक्यदीपका Aho! Shrutgyanam

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