Book Title: Jain Dharm aur Sangit Author(s): Gulabchandra Jain Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 5
________________ (6) अनुनासिकम-अनुनासिका से गाया जाय। अक्षरादि सम भी सात प्रकार का है : (1) अक्षर सम-हस्व, दीर्घ, प्लुत, सानुनासिका से युक्त । गीत के आठ गुण (1) पूर्ण-स्वर, लय और कला से युक्त गाया जाय। (2) रक्त-पूर्ण तल्लीन होकर गाया जाय । (3) अलंकृत-स्वर विशेष से अलंकृत होकर गाया जाय । (4) व्यक्त-स्पष्ट गाया जाय । (5) अविधुष्टं-अविपरीत स्वर से गाया जाय । (6) मधुरं - कोकिला की तरह मधुर गाया जाय। (7) सम-ताल, वश, व स्वर से समत्व गाया जाय। (8) सुललितं-कोमल स्वर से गाया जाय। (2) पद-सम : पद विन्यास से युक्त । (3) ताल-सम : ताल के अनुकूल कर आदि का हिलाना। (4) ग्रह-सम : बांसुरी या सितार की तरह गाना। (5) लय-सम : वाद्य यंत्रों के साथ स्वर मिला कर गाना। (6) निश्वसित्तोच्छवसितो-सम : श्वास ग्रहण करने और निकालने का क्रम व्यवस्थित । (7) संचार-सम : वाद्य यंत्रों के साथ गाना । प्रकारान्तर से अन्य आठ गुण : अन्य आठ गुण (1) उरोविशुद्ध-अक्षस्थल से विशुद्ध होकर निकलना। (2) कण्ठविशुद्ध-जो स्वर भंग न हो। (3) शिरोविशुद्ध-मूर्धा को प्राप्त होकर भी जो स्वर-नासिका से मिश्रित नहीं होता। (4) मृदुक-जो राग कोमल स्वर से गाई जाय। (5) रिंगित-आलाप के कारण स्वर अठखेलियां करता सा प्रतीत हो।। (6) पदबद्ध-जो गेय पद विशिष्ठ लालित्य युक्त भाषा में निर्मित किये गये हों। (7) समताल प्रत्युत्क्षेप-नर्तकी का पाद निक्षेप और ताल आदि परस्पर मिले हों। (8) सप्त स्वर सोमर-सातों स्वर अक्षरादि से मिलान खाते हों। (1) निर्दोष-गीत के वत्तीस दोष से रहित गाना। (2) सारवन्तं-विशिष्ठ अर्थ से युक्त गाना। (3) हेतुयुक्त-गीत से निबद्ध, अर्थ का गमक और हेतु युक्त। (4) अलंकृतं-उपमादि अलंकारों से युक्त। (5) उपनीतं-उपनय से युक्त । (6) सोपचारं कठिन न हो, विशुद्ध हो । (7) मितं--संक्षिप्त व सार युक्त । (8) मधुरंभ--मोग्य शब्दों के चयन से श्रति मधुर । . छन्द के तीन प्रकार : (1) सम-चारोंपाद के अक्षरों की संख्या समान। . (2) अर्घसम-प्रथम और तृतीय, द्वितीय और चतुर्थ पाद समान संख्या बाले हों। १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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