Book Title: Jain Dharm aur Sangit Author(s): Gulabchandra Jain Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 9
________________ कार्तक. 11 इहामृता तथा 12 वीथी-इस प्रकार हरिश्चन्द्र (नाटक). (11) सुधाकलश (कोष), (12) बारह प्रकार के रूपक बताये गये हैं। पांच अवस्थाओं आदिदेवस्तवन, (13) कुमार विहारशतक, (14) और पांच संधियों का भी उल्लेख है। जिनत्तेत्र, (15) नेमिस्त्व, (16) मनुसुब्रस्त्व, (17) यदुविलास, (18) सिद्ध हेमचन्द्र, शब्दानुशासन, लघुद्वितीय विवेक "प्रकरणाद्यकादशनिर्णय न्यास, (19) सोलह साधारण जिनस्त्व, (20) से लेकर बीथी तक के 11 रूपकों का वर्णन है। इसमें प्रसाद्धात्रिशिकर, (21) युगादिद्वात्रिंशिका, (22) वत्ति, रस. भाव और अभिनय का विवेचन है। व्यतिरेकद्वात्रिंशिका, (23) प्रबंधशत-यह ग्रंथ अभी तक अप्राप्त है। तृतीय विवेक "वृत्तिरस-भावाभिनय विचार" में । चार वृत्तियों, नव रसों, नव स्थायी भावों, तैतीस __ "आचार्य दर्पणवत्ति" व्यभिचारी भावों, रस आदि आठ अनुभावों और अभिनवों का निरूपण है। ... आचार्य रामचन्द्र सरि और गुण चन्द्र गणि ने अपने नाट्यदर्पण पर स्वोषज्ञ विवृत्ति की रचना की चतुर्थ विवेक "सर्वरूपक साधारण लक्षण निर्णय" है। इसमें रूपकों के उदाहरण 55 ग्रन्थों में दिये गये में सभी रूपकों के लक्षण बताये गये हैं। हैं । स्वरचित कृतियों से भी उदाहरण लिये हैं। इसमें उपरूपकों के स्वरूप का आलेख किया गया है। आचार्य रामचन्द्र सूरि समर्थ आशुकवि के रूप में प्रसिद्ध थे; गुण-दोषो के बड़े परीक्षक थे। इन्होंने नाटक धनंजय के "दशरूपक" ग्रंथों को आदर्श रूप में आदि अनेक ग्रंथों की रचना की। गुरु हेमचन्द्रचार्य ने रखकर रखकर यह विवृत्ति लिखी गयी है। बित्तिकार ने वितलिलिखी गयी जिन नाटक आदि ग्रन्थों पर नहीं लिखा था उन विषयों कहीं-कहीं घनंजय के मत से भिन्न मत भी प्रदर्शित किया पर इन्होंने अपनी लेखनी चलाई । ये प्रबंध शतकर्ता भी है। भरत के माटय में पूर्वापर विरोध है. ऐसा भी माने गये हैं। प्रबंध शतक ग्रन्थ अभी तक प्राप्त नहीं उल्लेख किया है। अपने गरु आचार्य हेमचन्द्राचार्य के हआ है। ऐसे समय कवि की अकाल मृत्यु सं. 1230 "काव्यानुशासन" में भी कहीं-कहीं भिन्न मत का भी के आस-पास राजा अजयपाल के निमित्त हुई। ऐसी निरूपण मिलता है । इस दृष्टि से यह कृति विशेष तौर सचना प्रबंध से मिलती है। इनके गुरुभाई गुणचन्द्र से अध्ययन करने योग्य है। नाट्यदर्पण स्वपोत विवृत्ति सरि भी समर्थ विद्वान थे। उन्होंने "सवृत्तिक द्रव्या- के साथ गायकवाडा ओरियेन्टल सीरीज में दो भागों में लंकार" आचार्य रामचन्द्र सूरि के साथ रचना की है। छपा है। इस ग्रन्थ का के. एच. त्रिवेदिकृत आलोच नात्मक अध्ययन लालभाई दलपतभाई भारतीय आचार्य रामचन्द्र सूरि ने जो ग्रन्थ लिखे हैं, उनमें संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद, से प्रकाशित हुआ है। वर्तमान समय में निम्नलिखित ग्रन्थ उपलब्ध हैं : "प्रबंध शतक" (1) कौमुदीमियाणंद (प्रकरण), (2) नलविलास (नाटक), (3) निर्भय, (4) मल्लिकामकरंद (प्रकरण), आचार्य हेमचन्द्र सूरि के शिष्यत्व आचार्य राम(5) यादवाभ्युदय (नाटक), (6) रघुविलास (नाटक), चन्द्र सूरि ने 'नाट्यदर्पण" के अतिरिक्त नाट्यशास्त्र (7) राघवाभ्युदय (नाटक), (8) रोहिणी मृगांक विषयक "प्रबंध शतक" नामक ग्रंथ की भी रचना की (प्रकरण), (9) बनमाला (नाटिका), (10) सत्य- थी जो अप्राप्य है । १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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