Book Title: Jain Dharm aur Sangit Author(s): Gulabchandra Jain Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 7
________________ मध्यकाल में हिन्दुस्तानी और कर्णाटक की प तियों का प्रचार हुआ और उसके साथ आचार्यों ने संगीत पर अनेक ग्रन्थ भी लिखने प्रारंभ कर दिये । सन् 1200 में सब पद्धतियों का मंथन कर शारंगदेव ने, 'संगीत रत्नाकार" नामक ग्रंथ लिखा । उस पर छः टीका ग्रंथ भी लिखे गये। इनमें से चार टीका ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं । अर्धभागधी ( प्राकृत) में रचित "अनुयोग द्वार" सूत्र में संगीत विषयक सामग्री पद्म में मिलती है। इससे ज्ञात होता है कि प्राकृत संस्कृत में भी अनेक ग्रंथ रहे होंगे क्योंकि कोई भी ग्रंथ लिखने के लिये उसके पूर्व की आधारशिला आवश्यक रहती है। उपरोक्त जैन आगमों और अन्य ग्रन्थों के आधार पर जैन आचार्यों ने भी संगीत पर कुछ ग्रन्थों कि रचना अति पैनी दृष्टि से की है। "संगीत समयसार " ( यह ग्रन्थ त्रिवेन्द्रम संस्कृत प्रस्थमाला में छापा गया है) । दिगम्बर जैन मुनि अभयचन्द के शिष्य महादेवाचार्य और उनके शिष्य पापवंचन्द्र ने "संगीत समयसार " नाम के ग्रन्थ की रचना लगभग वि. सं. 1380 में को है । इस ग्रन्थ में नव अधिकरण है, जिनमें नाद, ध्वनि, स्थायी, राग, वाद्य, अभिनय, ताल, मस्तार और अध्वयोग इस प्रकार अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें प्रताप दिगम्बर और शंकरनामक ग्रन्थों का उल्लेख पाया जाता है और भोज, सामेश्वर, परमर्दी इन तीन राजाओं का नाम भी पाया जाता है। (विशेष परिचय के लिये देखें जैन सिद्धांत भास्कर भाग - 9 अंक-2 और भाग- 10 अंक-10 ) | - 'संगीतोपनिषत् सारोद्वार" यह ग्रन्थ आचार्य राजशेवर सूरि के शिष्य सुधाकलश ने वि. सं. 1406 में लिखा । यह ग्रंथ गायकवाड़ा Jain Education International आरियेन्टल सीरीज, बड़ौदा से प्रकाशित हो गया है । यह ग्रन्थ स्वयं सुधाकलश द्वारा वि. सं. 1380 में रचित "संगीतोपनिषद" का स्वरूप है। इस ग्रंथ में 6 अध्याय हैं और 610 श्लोक हैं। प्रथम अध्याय में गीत प्रकाशन, दूसरे में प्रशस्ति सौपाश्रय-ताल प्रकाशन, तीसरे में गुणस्वर रागादि प्रकाशन और छठें में नित्य पद्धति प्रकाशन है । यह कृति "संगीत मकरंद" और संगीत पारिजात से भी विशिष्टतर और अधिक महत्व की है। इस ग्रंथ में नरचन्द्र सूरि का "संगीतज्ञ" के रूप में भी उल्लेख हुआ है। प्रशस्ति में अपनी "संगीतोपनिषत्" रचना के वि. सं. 1380 होने का उल्लेख भी है । मलधारी, अभयदेवसूरि की परम्परा में अभी चन्द्र सूरि हो गये हैं । वे संगीत शास्त्र में विशारद थे, ऐसा उल्लेख सुधाकलश मुनि ने किया है। "संगीतोपनिषत" आचार्य राजशेखरसूरि के शिष्य सुधाकलश "संगीतोपनिषत” ग्रन्थ की रचना सं. 1308 में की ऐसा उल्लेख ग्रन्थकार ने स्वयं सं. 1406 में अपने "संगीतोपनिषत सारोद्वार" नामक ग्रन्थ की प्रशस्ति में किया है। यह बहुत बड़ा था जो अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाया । सुधाकलश ने " एकाक्षरनाम माला" की भी रचना की है । "संगीत मंडन " मालवा मांडवगढ़ के सुलतान आलमशाह के मंत्री मंडन ने विविध विषयों पर अनेक ग्रंथ लिखे हैं । उनमें १७७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10