Book Title: Jain Dharm Sindhu
Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati
Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati

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Page 7
________________ रायबहारजीकी सखावत इकिले बंगालेमेंहीं नहीं है परं यत्र यत्र उनोकों आवश्यकीय लगा उहां धर्म धन खर्चनेमेंनी पानी पानी जरी नही. सुरत पासके कतार गामके जीर्णोधारके वास्तेनी बहुत प्रशंसा पात्र मदद किई. छत्रीयकुंम और सुविधिनाथ नगवंतके चवन, जन्म, ज्ञान, कल्याणकवाले काकंदीनगरीके तीर्थमे शीखरबंधी मंदीर बनाये. महावीर स्वामीकी निर्वाणजूमी पावापुरीमें और जहां वीस तीर्थकर मोद पधारेथे एसे श्रीसमेत शिखरजी तीर्थमें जानेके स्टेसन गरेमीमेली मंदिरजी बनाया. जंगीपुरमेंनी नया मंदीर बनाया जाता है. और मारवाम, राजपुताना, अजीमगंज, शीखरजी, पावापुरी, काकंदी, राणीगाम, बाबुराज, उपरांत मुंबश्मेनी जैन यात्रालुयोंको आश्रयदायी धर्मशालायें उक्त महोदयकी ऊलाऊल अचल कीर्ति स्थन रूप सुशोनित है. . तीर्थाधिराज श्रीशजय तीर्थकी तलहटीमें सदावत दीया जाता है और सिझाचलजी, तलाजा, वला, प्रमुख कीतनेहि स्थानोंपर उक्त महोदयके नामकी जैनपाठशालायें स्थापित होके ज्ञानवृद्धीका उद्योगनी सिरु किया गया है. तउपरांत उक्त महोदयने श्रीसिघाचलजी, पावापुरी, समेत शिखरजी, अयोध्याजी विगेरह स्थानोपर तीर्थयात्रा लेजानेका श्रीसंघजी निकालके संघवी तिलकनी करायेथे. । उक्त महोदय एसे पुण्य प्रतापी है की जिनकी संपूर्ण प्रशंसा लिखनेमें कलमकी ताकत नही है. . . उक्त महोदयने १९०४ में बमोदे वाली तीसरी जैन श्वेतांबर कौनफरन्सके प्रमुख होके समस्त जैनोमे एक अग्रेसरपद लियाथा. . उक्त महोदयके धार्मिक और सार्वजनीक हितकार्यकी उदार

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