Book Title: Jain Dharm Sindhu Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati View full book textPage 6
________________ रायबहाउर बाबु विसनसिंघजी बचपन सेंहि व्यापारी लाइ नकी अद्भुत शक्ती धारक जिनोमें बुद्धी कला कुशलता, दृढता परिपूर्ण थी. सर्वजनोसे हाजिर जवाबी और विशेषकर बहुत परिणाम दर्शी थे. उनोने धीरधारका धंधा बढाया और कलकत्ता, सिराजगंज, माश्मेनसींग, जंगीपोर, अजीमगंजमें बेड्डे खोली. ___ यह बेङ्कोंमें बेङ्करोंके अथाग परिश्रमसे अथाग विश्वास श्रानेसें फतेहमंदरीतीसे कार्यवाही चलने लगी. रहते रहते जमीनदारों व जागीरदारोंकों धनधीरनेका कार्य सिरु किया जिस्के परिणामसे दोनों महोदयें बमे जागीरदार होगए. मुर्शीदाबाद, माश्मेनसींग, बीरजुम, नदीया, पमीकोट, पूरपीया, दिनाजपुर, राजसाई, मालदा, नागलपुर, कुमका विगरह ग्रामोंकी जमीनके मालेक हुवे. दोनों बंधु मात्र व्य संपादान करनेमेंहि प्रवर्ते थे एसा नही परं उनके साथ उनोंका पुण्यकर्ममेंनी प्रयत्न चालु था... . दीन दुःखी और हजारों गरब व लाचारोंके लिए अन्नक्षेत्र स्थापन कीये. जिस्की कार्कीदी अनीली जलाऊल जलकती हे. . (जैनमंदिरे, उपाश्रयें, धर्मस्थाने में बहुत धन व्यय कीया जिनकी विगत) प्रथमतः अपनी जन्मजूमी मुर्शीदाबादमें श्रीचिंतामणजी, नेमिश्वरजी, श्रीशामलाजी, अष्टापदजी, दादाजीके मंदीरोंका जीर्णोधार कराया. . नेमीश्वरजीके मंदिरमें दो रत्नकी प्रतिमा है और सिचऋजीका गट्टा हैं सोनी उक्त महोदयने स्थापित किये है. . अजीमगंजसे उ मील अंतरसे कासम बजारमे श्रीनेमिनाथजीका मंदिरकाली जीर्णोद्धार कराया जिस्मे रत्नकी प्रतिमाजी विशेष दर्शनके लायक है.Page Navigation
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