Book Title: Jain Dharm Prakash 1961 Pustak 077 Ank 10
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रधानाचार्य सूची में भीमपल्ली के महत्वपूर्ण उल्लेख गुर्वावली -ले० अगरचंद नाहटा I आसपास के प्रदेश तथा शंखेश्वर पार्श्वनाथ संबंधी मुनि जयविजय के ग्रन्थ बहुत ही उल्लेखनीय है उसी श्रृंखला में मुनि विशालविजयजीने अबतक छोटे बड़े १०-१२ मन्थ प्रकाशित किये है जिनमें से श्री भील दिया पार्श्वनाथजी' सीर्थ और 'श्री राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह अभी अभी मुझे प्राप्त हुए हैं। भीलडिया का प्राचीन संस्कृत नाम भीमपही पाया जाता है। उसके संबंध में मुनि कल्याणविजयजी का एक लेख 'जैन युग में काफी वर्ष पहले प्रकाशित हुआ था और वहां के वीरजिनालय संबंधी अभय तिलक गणि का महावीर रास भी जैन बुग में था मुनि विशाल विजयजीने उपरोक्त स्वतन्त्र पुस्तक प्रकाशित करके बिखरी हुई सामग्री को नवीन जानकारी के साथ प्रका शित करने का सुन्दर प्रयत्न किया है पर खरतरगच्छ वृदद ली नाम ऐतिहासिक प्रामणिक ग्रन्थ में भीमपल्ली के जो महत्वपूर्ण उल्लेख है वे उनके अवलोकन में नहीं आये इस लिए उनको प्रस्तुत लेख में प्रका शित किया जा रहा है जिससे भीहरिया भारत के कोने कोने में जैन धर्म के अनुयायी निवास करते हैं। समय समय पर निवास और आजीविका की सुविधा और असुविधा के कारण जिस प्रदेश या ग्राम, नगर में प्राचीन काल में जैनों की बस्ती थी वहां परवर्ती काल में नहीं रही और वे लोग अन्य स्थानों में जाके बस गये। इसलिये बहुत से स्थान ऐसे भी हैं जहां जैनों के आज घर नहीं है या थोड़े है पर प्राचीन और मध्यकाल में वहां जैन धर्म का प्रचार रहा है। हे जैन पुरातन मंदिर, मूर्तियों, साहित्य आदि से वह भली भांति प्रमाणित है अतः जैन इतिहास की सम्पर्क जानकारी के लिए उन ग्राम नगरों का इतिहास भी ज्ञान लेना प्रकाश में लाना आवश्यक होता है । बहुत से स्थान तो जैन धर्म के तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध रहें है और हैं उनके संबंधं में सामान्य स्थानों की अपेक्षा अधिक उल्लेख मिलता 1 जैन तीर्थो के संबंध में अनेकों अन्य प्रकाशित हो चुके हैं उनमें मुनि जयन्तविजयजी और उनके शिes विशाल के मन्थों को अपना महत्व है। जावू और उसके Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir પાછળ સાચું સ્વરૂપ શું છે, ઋતુ તરંગ કર્યુ છે,વાય જગ્ તેમાં મુખ્ય થયું નહીં માહિનીમાં પાિમે એમાં લાભ છે કે હાનિ, એ તપાસી લેવુ સાધુ નહીં. ગમે છે ને સ્થાનક આવે છે. માટે ોઇએ. અને જેમ કમલ ધણા ઊંડા પાણીમાં પશુ કરવું નહીં. પણ કર્તવ્ય માથે આવી પડ્યું છે નિર્દેપ રહી શકે છે. અને પાણી ગમે તેટલું અને વગર કે કરવું પડે છે માટે કરૂં છું એવુ વધતુ જાય છતાં એ ઉપર જ રહે છે. અને પાણીમાં સ્વરૂપ જાણું છું એવી ભાવના કેળવતા રહીએ તા નિમજ્જિત થઈ જતું નથી. તેમ આપણે પણુકના લેપથી અને તેના દુધમ પરિણામેથી આપણે સાંસારિક કાર્યો કરવા છતાં કથી અને દોષથી કાંઇક બચી શકીએ. શાસનદેવ એવી સુબુદ્ધિ બધાખસી શકીએ. શ એટલી જ છે કે, ભલે રૂપ એને આપે એવી ભાવનાથી વિરમીએ છીએ. १२१ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20