________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
શ્રી જૈન ધર્મ પ્રકાશ
[श्रावणु
पार्श्वनाथ तीर्थ पुस्तिका के अगले संस्करण ४ संवत् १३१७ में भीमपल्ली के राजा में आवश्यक संशोधन व परिवर्धन किया जा मंडलिक और दंडाधिपति शीला के सानिध्य सके। खेद है कि प्राप्त गुर्वावली में संक्त में साह खिमढ़ सा. जगद्धर के पुत्र सा भुवन१३९३ तक काही वर्णन है इस लिए उसके पालने स्थानीय व पालणपुर आदि के संघ बदि के भीमपल्ली के उल्लेख उसमें नहीं के साथ बड़े महोत्सव से वैशाख सुदी १० मिलते पर उससे यह तो भली भांति सिद्ध सोमवार को मन्दिर तिलक नामक वीर जिनाहोता है कि मुनि सुन्दरसूरि रचित गुर्वावली लय के शिखर पर स्वर्ण दंड, स्वर्ण कलश की के सोम नमसूरि संबंधी उल्लेख के आधार से प्रतिष्ठा करवा कर आरोपित किये। इस समय जो यह निर्णय किया गया है कि संवत १३५३ और भी बहुत सी प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई। में मीनपल्ली का विनाश हो गया। अह्मा- ५. संवत १३३४ के वैशाख वदी ५ को वटीट ही सेना, आग लगादी होगी और भीमपल्ली में श्री नेमिनाथ, पाश्वनाथ प्रतिमा, दरमनविजयजीने जैन परम्परानो इतिहास जिनदत्तसरि मनि, श्री शांतिनाथ देवग्रह की भाग २ पृष्ठ २३९ में संवत् १३३४ में सोम- वजा मा राय ने और जी प्रभसूरिने भीमपल्ली का विनाश आकाश दर्शन की मर्ति साह वैजल ने महोत्सब पर्थक प्रतिमा से जानकर पहली काति के पूर्ण होते ही करवाई। वैशाख वदी ९ को मंगलकलश नामक बिहार कर दिया और वहां के जैन राधनपुर साधु की दीक्षा हुई। में आकर बस गये ये दोनो मन्तव्य सही नहीं
नही ६. संवत् १३४६ के वैशाख वदी १४ को है जैसा कि खरतरगच्छ गुर्वावली के नीचे
। भीमपल्ली में श्री चंद्रसूरिजी का प्रवेश महोत्सव दिये जाने वाले उल्लेखों से प्रमाणित होगा।
हुआ। वैशाख सुदी ७ को बहुत सी मूर्तियों १ संवत् १२५१ में अजमेर में २ महिने
की प्रतिष्टा और जेठ बदी ७ को बहुत से तक मलेच्छों का बडा उपद्रव रहा अतः जिन
साधु-साध्वीयों की दीक्षा हुई। पतिसूरीजीने पाटण पधार कर भीमपल्ली में ८. संवत् १३५२ में भीमपल्ली से साह आकर चातुर्मास किया।
धनपाल के पुत्र भइसिह और सामल ने
संखेश्वर पार्श्वनाथ और पाटण का संघ निकाला। २. संवत् १३११ के वैशाख शुदी ६ जिनचन्द्रसरिजी भीमपल्ली पधारे ।। पालनपुर के श्री चन्द्रप्रभस्त्रामा क विधि चत्य ७. संवत् १३६४ में भीमपल्ली का मार्ग में भीमपल्ली प्रसाद में स्थित महावीर भग- चोर चरट के उपदब से व्याप्त होने पर भी वान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा श्रावक भुवनपाल भणशाली दुर्लभ के सहाय से जिनचंद्रस रिजी ने बडे महोत्सव और द्रव्य व्यय से प्रतिष्टा
भीमपल्ली पधारे। करवाई।
९. संवत् १३६६ में शाह जैसल ने स्तम्भ ३. संवत् १३१३ अषाढ़ सुदी १० को तीर्थ से शत्रुजय का संघ निकाला उसमें भीमपल्ली में महावीर प्रतिमा स्थापीत की गई। भीमपल्ली का संघ भी सम्मिलित हुआ।
For Private And Personal Use Only