Book Title: Jain Dharm Prakash 1957 Pustak 073 Ank 02 03 Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 00000000000000000..............००० •00000000000000000 DEOCONCOD www.kobatirth.org ............... मुसाफिर | [सं. राजमल भण्डारी आगर ] आया जहांसे सैर करने, है मुसाफिर ! तुं यहां । था सैर कर के लोट जाना, युक्त तुझको फिर वहां ॥ 19900300. तू सैर करना भूल कर निज, घर बनाकर टिक गया । ॥ २ ॥ भंडार तेरा सत्य है, चैतन्यमें करता रमण, सुखरूप है निर्मित है, भाई मुसाफिर ! शौक संकल्प तेरा सिद्ध तुं अज्ञान से अपने बंधा नहीं याद करता आपको, कर याद अपने देशकी परदेशमें क्यों रुक गया ? ।। १ ।। सम्बन्ध तूने कर दिए । जंजालमें है फंस गया || यह हंस रहा वो रो रहा । मलमूत्र क्यों ही धो रहा ? व्यवहार तेरा सत्य है । तु मुक्त शाश्वत नित्य है ॥ क्यों हो रहा तु दीन है। तज तु सर्व चिन्ताहीन है वरदान दाता सर्वका । चाकर बना है सर्वका ॥ दर दर भटकता फिर रहा । ॥ ३ ॥ आजा मुसाफिर ! होंशमें, क्यों हाय हा ! हा !! कर रहा ॥ ४ ॥ फंस कर अविद्या जाल में, आनंद अपना खो दिया । नहा कर जगतमल सिन्धुमें, रंग रूप सुन्दर धो दिया || निःशोक है तु सर्वदा क्यों मोहवश पागल भया । तज दे मुसाफिर! नींद जग, अब भी न तेरा कुछ गया ॥ ५ ॥ जीनको सुहृदतुं जानता, सब शत्रु है सच मान रे । जीतें मरे भी दें, हिवकर न उनको जान रे ॥ दे त्याग ममता सर्वकी, सच शेठको पहिचान रे । प्रिय मुसाफिर ! चेत हितकर, वाक्य पर दे ध्यान रे आया यहां पर सैर करने, मार्ग अपना भूल कर । खाता फिरे हैं ठोकरें, निज भूल अब निर्मूल कर ॥ कर याद अपने धामकी, तू मत भटक अब दर-बदर । श्रुति संत कहते हैं मुसाफिर ! मान सच विश्वास कर ॥ ७ ॥ ॥ ६ ॥ अंजान कुल्टा नारीसे बच्चे हुवे, कच्चे हुवे, चें चें करे में में करे, है रे मुसाफिर ! चेत जा, GGGGOO.GOOG Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only 0604CCCCCCGGGGOOG CGCGC GOGGGGGGGCQ (१८) .............95050050Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20