________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
00000000000000000..............०००
•00000000000000000
DEOCONCOD
www.kobatirth.org
...............
मुसाफिर |
[सं. राजमल भण्डारी आगर ]
आया जहांसे सैर करने, है मुसाफिर ! तुं यहां ।
था सैर कर के लोट जाना, युक्त तुझको फिर वहां ॥
19900300.
तू सैर करना भूल कर निज, घर बनाकर टिक गया ।
॥ २ ॥
भंडार तेरा सत्य है, चैतन्यमें करता रमण, सुखरूप है निर्मित है, भाई मुसाफिर ! शौक संकल्प तेरा सिद्ध तुं अज्ञान से अपने बंधा नहीं याद करता आपको,
कर याद अपने देशकी परदेशमें क्यों रुक गया ? ।। १ ।। सम्बन्ध तूने कर दिए । जंजालमें है फंस गया || यह हंस रहा वो रो रहा । मलमूत्र क्यों ही धो रहा ? व्यवहार तेरा सत्य है । तु मुक्त शाश्वत नित्य है ॥ क्यों हो रहा तु दीन है। तज तु सर्व चिन्ताहीन है वरदान दाता सर्वका । चाकर बना है सर्वका ॥ दर दर भटकता फिर रहा ।
॥ ३ ॥
आजा मुसाफिर ! होंशमें, क्यों हाय हा ! हा !! कर रहा ॥ ४ ॥ फंस कर अविद्या जाल में, आनंद अपना खो दिया ।
नहा कर जगतमल सिन्धुमें, रंग रूप सुन्दर धो दिया || निःशोक है तु सर्वदा क्यों मोहवश पागल भया ।
तज दे मुसाफिर! नींद जग, अब भी न तेरा कुछ गया ॥ ५ ॥ जीनको सुहृदतुं जानता, सब शत्रु है सच मान रे । जीतें मरे भी दें, हिवकर न उनको जान रे ॥ दे त्याग ममता सर्वकी, सच शेठको पहिचान रे । प्रिय मुसाफिर ! चेत हितकर, वाक्य पर दे ध्यान रे आया यहां पर सैर करने, मार्ग अपना भूल कर । खाता फिरे हैं ठोकरें, निज भूल अब निर्मूल कर ॥ कर याद अपने धामकी, तू मत भटक अब दर-बदर । श्रुति संत कहते हैं मुसाफिर ! मान सच विश्वास कर ॥ ७ ॥
॥ ६ ॥
अंजान कुल्टा नारीसे बच्चे हुवे, कच्चे हुवे, चें चें करे में में करे, है रे मुसाफिर ! चेत जा,
GGGGOO.GOOG
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
0604CCCCCCGGGGOOG
CGCGC GOGGGGGGGCQ
(१८) .............95050050