Book Title: Jain Dharm Ki Parampara Author(s): Narayanlal Kachara Publisher: Narayanlal Kachara View full book textPage 2
________________ लगा। अपराध और अव्यवस्था के फलस्वरूप 'कुल' व्यवस्था का विकास हुआ। कुल के मुखिया को 'कुलकर' कहा गया। उसे दंड देने का अधिकार होता। वह कुल की व्यवस्था करता, उनकी सुविधाओं का ध्यान रखता और लूट-खसोट पर नियंत्रण रखता। कुलकर-सात हुए हैं। विमलवाहन, चक्षुष्मान, यशस्वी, अभिचन्द्र, प्रसेनजित, मयदेव व नाभि। कुलकर - व्यवस्था में तीन दण्ड नीतियाँ प्रचलित हुई। पहले कुलकर विमलवाहन के समय हाकार नीति का प्रयोग हुआ (हा! तूने यह क्या किया!) यह नीति दूसरे कुलकर के समय भी थी। तीसरे और चौथे कुलकर के समय छोटे अपराध के लिए 'हाकार' और बड़े अपराध के नीचे 'माकार' (मत करो) नीति का प्रयोग किया गया। पाँचवे, छठे और सातवें कुलकर के समय में "धिक्कार' नीति चली। छोटे अपराध के लिए 'हाकार', मध्यम के लिए 'माकार' और बड़े अपराध के लिए 'धिक्कार' नीति का प्रयोग किया गया। नाभि के समय कल्पवृक्षों से प्राप्त भोजन अपर्याप्त हो गया। युगल आपस में झगड़ने लगे और 'धिक्कार' नीति का उल्लंघन होने लगा। घबराकर वे ऋषभकुमार के पास पहुँचे और स्थिति निवेदन की। ऋषभ ने उन्हें राजा की आवश्यकता बताई और कहा वे नाभि के पास जायें और राजा की मांग करें। नाभि ने ऋषभ को राजा घोषित किया। ऋषभ ने सर्वप्रथम नगर बसाया, विनीता - अयोध्या। फिर गाँवों और नगरों का निर्माण हुआ। लोग वन से हटकर भवनवासी बन गये। पालतु पशुओं का संग्रह होने लगा। ऋषभ ने मंत्रिमंडल बनाया, आरक्षकदल स्थापित किया, सेना और सेनापतियों की व्यवस्था की, नई दण्ड-नीति बनाई, और राजतंत्र को जन्म दिया। इस युग में अकाल मृत्यु होने लगी। एक बालिका अकेली रह गई। नाभि ने उसे ऋषभ की पत्नी के रूप में स्वीकार किया। यहीं से विवाह-पद्धति का उदय हुआ। इसके बाद लोग अपनी सहोदरी के अतिरिक्त भी दूसरी कन्याओं से विवाह करने लगे। राजा ऋषभ की नई शिक्षाएं (1) कृषि कर्म (2) अग्नि का उपयोग (3) भोजन पकाना (4) असि कर्म-सुरक्षा (5) मसि कर्म - (लिखा-पढ़ी से) वस्तु का विनिमय करना। (6) वर्ण व्यवस्था, क्षत्रिय सुरक्षा कार्य, वैश्य-कृषि तथा मसिकर्म, शुद्र-सेवा और सफाई (7) विवाह व्यवस्था (8) ग्राम व्यवस्था (७) दण्ड व्यवस्था (10) कला प्रशिक्षण-भरत को 72 कलाएं सिखायी। (11) लिपि - ब्राह्मी को अक्षर विद्या, सुन्दरी को गणित विद्या (12) बाहुबली को प्राणी की लक्षण-विद्या। जीवनकाल - 84 लाख पूर्व : 83 लाख पूर्व में सामाजिक, राजनैतिक मूल्यों की स्थापना। 1 हजार पूर्व-साधना, 99 हजार पूर्व - कैवल्य काल। प्रथम तीर्थंकर - चार तीर्थ - साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका की स्थापना - मुनि धर्म के पाँच महाव्रत और गृहस्थ-धर्म के 12 व्रतों का उपदेश भरत • राजा ऋषभ ने सौ पुत्रों को अलग-अलग राज्य सौंपे। भरत ने 98 भाईयों को अपने अधीन कर लिया। • बाहुबलि से युद्ध, बाहुबलि विजयी। बाहुबलि का त्याग और तपस्या। कैवल्य । • भरत का मुनि धर्म ग्रहण, कैवल्य। भरत के नाम देश का नाम भारत हुआ। भगवान् ऋषभ का निर्वाण ___ अवसर्पिणी के तीसरे आरे के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष रहने पर छ: दिन का अनशन और फिर माघ कृष्णा त्रयोदशी के दिन निर्वाण।Page Navigation
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