Book Title: Jain Dharm Ki Parampara
Author(s): Narayanlal Kachara
Publisher: Narayanlal Kachara

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Page 10
________________ उदयप्रभ के सहस्त्रों की संख्या में जैन अनुयायी थे। अफगानिस्तान में 175 फीट ऊँची तीर्थंकर ऋषभदेव की मूर्ति उपलब्ध हुई है। 1807 में कर्नल मकेंजी जैसे अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने जैन धर्म और संस्कृति की ओर विश्व का ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने जैन विद्या के विविध अंगों का अध्ययन कर उसे विदेशी भाषाओं में प्रस्तुत किया। श्री वीरचन्द्र राघव जी गांधी, बेरिस्टर चम्पतराय डॉ. कामताप्रसाद जैन आदि ने भी जैन धर्म की प्रभावना हेतु विदेशों में अच्छा कार्य किया। पिछली शताब्दी में मुनि सुशील कुमार जी और गुरुदेव चित्रभानु ने अमेरिका में जैन धर्म का प्रचार किया। वर्तमान में समणियों द्वारा इस दिशा में महत्तर कार्य किया जा रहा है। आज ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रिया, कनाड़ा, जापान, थाइलैंड, आदि देशों में जैन धर्म का अध्ययन और शोध कार्य हो रहा है। भारत में भी कुछ संस्थायें विदेशों में जैन धर्म के प्रचार प्रसार का कार्य कर रही है। संदर्भ ग्रंथ 1. जैन परम्परा का इतिहास, आचार्य महाप्रज्ञ। 2. जैन धर्म के प्रभावक आचार्य, साध्वी संघमित्रा। 3. जैन धर्म, पं. कैलाश चंद्र शास्त्री। 4. जैनधर्म परंपरा एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण, देवेन्द्र मुनि शास्त्री, उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रंथ। 5. युग-युग में जैन धर्म, डॉ. ज्योति प्रसाद जैन। 6. श्रमण संस्कृति की व्यापकता, प्रो. डा. राजाराम जैन। 7. सर्वोदयी जैन तंत्र, डा. नन्दलाल जैन 10

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