Book Title: Jain Dharm Itihas Par Mugal Kal Prabhav
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 8
________________ तपस्या की थी इस समय उनके पैरो के आस-पास के काफी पेड़ भी बड़े हो गए थे। जैन सूत्रों के अनुसार बाहुबली की आत्मा जन्म और मृत्यु से परे थी , और हमेशा कैलाश पर्वत पर ही वे तपस्या करते थे। जैन लोग उन्हें आदर से सिद्ध कहते है। गोमतेश्वर की मूर्ति उन्हें समर्पित होने की वजह से उन्हें गोमतेषा भी कहा जाता था। इस मूर्ति को गंगा साम्राज्य के मिनिस्टर और कमांडर चवुन्दराय ने बनवाया था , यह मूर्ति 57 फूट एकाश्म है, जो भारत के कर्नाटक राज्य के हस्सन जिले के श्रवनाबेलागोला पहाड़ी पर बनी हुई है। इस मूर्ति को 981 AD के दरमियाँ बनाया गया था। और दुनिया में यह सबसे विशाल मुक्त रूप से खड़ी मूर्ति है। वे मन्मथा के नाम से भी जाने जाते है। आचार्य श्री मानतुंग जी ( ११००-११२०) भक्तामर स्त्रोत आचार्य मानतुंग ग्यारहवीं सदी में भारत के मालवा प्रदेश पर राजा भोज का राज्य था।:आचार्य श्री मानतुंग दिगंबर जैन धर्म के वीतरागी नगन मुनी थे वह प्रकांड विद्वान, तपस्वी, ओजस्वी तथा तेजयुक्त आभामंडल धारक नग्न मुनी थे , जो सदा सांसारिक सुखों से विमुक्त तथा सदा निलप्त भाव से स्वयं में मग्न रहते थे। उन्हें वह अन्य सभी दिव्य शक्तियाँ 'ऋद्धि सिद्धियाँ' प्राप्त थी। अपनी अणिमा तथा लघिमा ऋद्धि से शरीर को सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा विशाल से विशाल बना सकते थे। जिस प्रकार भगवान हनुमान भौतिक से विमुक्त हो विचरण कर सकते थे। अपने शरीर से अनेक शरीर बना सकते थे |उनके मत था की भक्तामर-प्रणत-मौलिमणि-प्रभाणा,मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम्। सम्यक्प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा-वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम्।1। जैन आचार्य के उल्लेख हैं कि वह आत्माएँ जो जप -तप प्रयत्न से अपने आभामंडल के रंगों को रत्नों और मणियों के समान द्युतिमान बनाती हैं। वह शुद्ध आत्माएँ रत्न और मणि के समान अजर , अमर अविनाशी - स्वयम भगवान् हो जाती हैं। आचार्य श्री के मत हैं कि भूमंडल पर रत्न और मणियाँ ही एकमात्र अक्षय रंगों के भण्डार हैं और साक्षात देव रूप है रंग ब्रह्मांड की आत्मा है। रत्न और मणि काल दिशा तथा पंच महाभूतों के निरंतर प्रर्वतन चक्र से मुक्त अजर-अमर होते हैं। इस भाँति चौबीस तीर्थंकरों

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