________________
देवी देवताओं से वरदान मागने का उपक्रम रह गया है । भक्तामर स्तोत्र "सुरनत मुकूट रत्न छवि करे. अन्तर पाप - तीमिर सब हरे । जैसे भक्तामर स्तोत्र के हिंदी रूपान्तर जो मुगल के जैन दरबारियों द्वारा किया गया जैन धर्म के सर्वथा विपरीत है और जैन धर्म का उपहास है अधिक जानकारी हेतु हमारा----------- भक्तामर लेख पढ़े मुगल काल में संस्कृत : ग्रंथों को फारसी -मुगल में अनुवाद किया जा रहा था इस अनुवाद करने की विधि थी कि ब्राह्मण , संस्कृत पाठ मौखिक रूप से पढ़ेगा तथा उसकी हिन्दी करेगा , और फिर मुगलों फारसी में अनुवाद लिखना होगा। जैन और ब्राह्मण को समान रूप से इसके लिए मुगलों सहायता करते थे । अत: संस्कृत से हिंदी करने के समय जैन धर्म का सच्चा ज्ञान। भक्ति योग की बली चढ़ गया । और जैन धर्म के सिद्धांत विकर्त हो गये जैसे जैन धर्म का महा मन्त्र णमो - नमो बन गया जिससे जैन धर्म की आत्मा सहज ही शूली पर चढ़ गयी।
ब्राह्मण मुगल शाही परिवार के लिए संस्कृत आधारित कुंडली भी बनाते थे । इस प्रकार धर्म के ठेकेदार ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म को भक्ति योग में परिवर्तित कर दिया और वस्तिकता यह है की हिन्दू धर्म का प्राय सभी साहित्य भक्ति योग - में दान - क्रपा मांगना ही धर्महै उसी के अनुरूप की आज हिन्दू धर्म की आरती है
ॐ जय जगीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे
ॐ जय जगदीश हरे जो ध्यावे फल पावे दुःख विनशे मन का
सुख सम्पति घर आवे कष्ट मिटे तन का ॐ जय जगीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे
उपरोक्त आरती दयाकर मांगने से प्रेरित है जबकि वैदिक संस्कृति में गायत्री शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। माता गायत्री की श्रीमद् भागवत पुराण की आरती इस प्रकार है:
आरती अतिपावन पुराण की |धर्म - भक्ति - विज्ञान - खान की || टेक ||
महापुराण भागवत निर्मल |शुक-मुख-विगलित निगम-कल्ह-फल || परमानन्द-सुधा रसमय फल |लीला रति रस रसिनधान की || आरती०