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किरणों से अपना आहार लेने में असमर्थ होते थे उनको यह निर्देश था कि वह अपना आहार सूर्यास्त से पूर्व ही ले ले।
वर्तमान जैन धर्म की पूजा पद्दति ६००-७०० वर्ष पुरानी है यह पद्दति में मुगल काल में जैन धर्म के लोगो ने अपनी जान बचने के लिए बनाई गयी । मन्दिर में छुपकर सूर्य दर्शन -तथा - प्रतिकात्मक मूर्ति दर्शन, अन्य धर्मो के सामान देव को जल चढ़ाना “ -प्रक्षाल जलाभिषेक" तथा सूर्य देव के नाम पर मन्दिरो में स्थापित पत्थर की मुर्तिया के दर्शन - द्रव्य चढ़ाना । मुर्तीयो को देव मानना - तथा उनकी - दर्शन कर भौतिक लाभों के वरदान मागने की पद्धति यह सभी प्रकरण जैन धर्म के सिधांत अनुरूप नही है ।
जैन धर्म की दर्शन पद्धतियों का पिछले ६०० -७०० वर्षों से शुद्धिकरण नही हुवा है और यह परिवर्तन युग है और यही उपयुक्त समय है जबकि हम अपनी अज्ञानता अन्धविश्वाश - मुगल काल के भय से छुटकारा पा ले
जैन पद्दति के अनुरूप ही हिन्दू धर्म में सूर्य को जल देना ६००-७०० वर्ष पुरानी डरे हुवे साधको की छुप छुप कर साधना करने की पद्दति हैं. | यह हमारा सोभाग्य है की सूर्य दर्शन की प्राचीन पद्धति को बिहार प्रदेश में छट पूजा के नाम से संजोकर रखा गया है।
यह एक गहर गंभीर विषय है कि वर्तमान समय में भी देव दर्शन - सूर्य उपासना योग जो मानव मात्र शारिरीक आवश्यकताओं - भूख प्यास. संदी गर्मी आरोग्यता , दिव्यता आयु मुक्त शरीर प्राप्त कर परम सुख अवस्था में शरीर त्याग कर दैवत्व प्राप्त करने का सच्चा ज्ञान है
इस विषय का सबसे दुखद पहलू यह है कि वर्तमान प्रचलित पद्धति ठगो - झुटे पंडितों की धन अर्जित करने प्रवति से लिप्त भृष्ट पद्धति है। आज यह भृष्ट पद्धति आगम -रिती -रिवाज के रुप में प्रचलित है जिसमें अनादि काल में वैदिक संस्कृति के देव दर्शन - सूर्य उपासना योग से मानव मन्त्र शारिरीक आवश्यकताओं - भूख प्यास. संदी गर्मी आरोग्यता , दिव्यता आयु मुक्त शरीर प्राप्त कर परम सुख अवस्था में शरीर त्याग कर दैवत्व प्राप्त करने की कला का सर्वथा अभाव है । इस विषय का सबसे दुखद पहलू यह है कि इसके उपरान्त ठगो - झुटे पंडितों की