Book Title: Jain Dharm Itihas Par Mugal Kal Prabhav
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 19
________________ • • प्रत्येक पल मरो ताकि तुम हर क्षण नवीन हो सको। उसे ढूंढने की जरुरत नहीं जो कि यही हैं, रुको और देखो। • दर्शन = जब वाणी मौन होती है, तब मन बोलता है... जब मन मौन होता है, तब बुद्धि बोलती है... जब बुद्धि मौन होती है, तब आत्मा बोलती है... जब आत्मा मौन होती है, तब परमात्मा से साक्षात्कार होता है। " + धार्मिक व्यक्ति की पुरानी धारणा यह रही है कि वह जीवन विरोधी है। वह इस जीवन की निंदा करता है, इस साधारण जीवन की वह इसे क्षुद्र, तुच्छ, माया कहता है। वह इसका तिरस्कार करता है। मैं यहाँ हूँ, जीवन के प्रति तुम्हारी संवेदना व प्रेम को जगा के लिये * जब वाणी मौन होती है, तब मन बोलता है... जब मन मौन होता है, तब बुद्धि बोलती है... जब बुद्धि मौन होती है तब आत्मा बोलती है... जब आत्मा मौन होती है। तब 3 परमात्मा से साक्षात्कार होता है। 3 वर्तमान जैन धर्म : वर्तमान का जैन धर्म अनादि काल में जैन धर्म से विमुख है । प्राचीन काल में जैन तीर्थकरों सिद्धो तथा असख्य मुनियों सात शुद्धयों युक्त निर्वाण सिद्ध क्षेत्र पर पहुच कर सूर्य जप तप कर मोक्ष पधारे । प्राचिन युगों में जैन धर्म के मुनियों की जीवन की सभी आवश्यकताऐं सूर्य साधना से पूरी होती थी अर्थात वह पेड़ पौधो की भाँती सूर्य किरणों से अपना आहार लेते थे तथा वह सभी मुनी सूर्य तप से सर्दी गर्मी वर्षा के प्रकोप से मुक्त रहते थे, जैन तप सूर्य देव दर्शन से उन्हें ८४ रिद्धि सिद्धियों प्राप्त होती थी और जैन धर्म का सुस्कृत सभ्य समाज देव दर्शन - सूर्य उपासना योग तथा दस लक्षण धर्म पालन कर अपनी शारिरीक आवश्यकताओं भूख प्यास. र्सदी गर्मी आरोग्यता, दिव्यता आयु मुक्त शरीर प्राप्त कर परम सुख अवस्था में शरीर त्याग कर दैवत्व प्राप्त करते थे। शास्त्रिय उल्लेख हैं कि अनादि काल में सभी महापरुषों ने देव दर्शन सूर्य उपासना कर अपने जीवन अनंत शक्ति, अनंत बल, अनंत रुप, तथा सहज दिव्य शक्ति प्राप्त की जिसके सुंदर प्रकरण रामायण महा भारत ग्रंथो में मिलते है । उस समय साधु या श्रावक समाज सूर्य

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