Book Title: Jain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva Author(s): Pramuditashreeji Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 9
________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व समर्पण जिनके मुख पर तेज और सौम्यता थी, जिनकी वाणी में ओज और मधुरता थी, जिनके कार्य में शौर्य और दक्षता थी, जिनके हृदय में वात्सल्य और पवित्रता थी, जिनके जीवन में स्वाध्याय और जागृति थी, सर्वगुण सम्पन्ना ओ ! 'गुरुवर्या' कहूँ मैं कौन-सी विशेषता... आपकी ही दिव्य कृपा से यह श्रुतधारा प्रवाहित हुई। आप ही की असीम कृपा से यह कृति निर्मित हुई । Jain Education International मेरी जीवन निर्मात्री, संयमदात्री, सुप्रसिद्ध व्याख्यात्री प. पू. गुरुणीमैया श्री हेमप्रभाश्रीजी म.सा. के चरण-कमलों में कृति का प्रत्येक शब्द सश्रद्धा, सभक्ति, सविनय सादर समर्पित...। - साध्वी प्रमुदिता 3 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 580