Book Title: Jain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Author(s): Pramuditashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 10
________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व मंगलकामना साध्वी प्रमुदिताश्रीजी को पीएच.डी. की उपाधि मिली, यह जानकर प्रसन्नता हुई। आपने जैन-दर्शन में संज्ञा (व्यवहार के प्रेरक तत्त्व) विषय पर शोध किया और उनका वह ग्रन्थ भी अब प्रकाशित हो रहा है। निश्चित रूप से यह ग्रन्थ सभी धर्मप्रेमी साधकों साधु-साध्वियों एवं गुरू भक्तों का मार्गदर्शन करेगा। मैं इस ग्रन्थ के प्रकाशन से जुड़े सभी महानुभावों को साधुवाद प्रेषित करता हूँ तथा इसके शीघ्र प्रकाशन की मंगलकामना करता हूँ। गच्छहितेच्छु गच्छाधिपति आचार्य जिन कैलाशसागर सूरि नमोनमः श्री गुरुनेमिसूरये ॥ .. विदुषी शासन प्रभाविका साध्वीजी श्री हेमप्रभाश्रीजी म. की शिष्या साध्वी प्रमुदिताश्री ने 'संज्ञा' को विषय बनाकर शोधकार्य किया और बहुत कम अरसे में अपना शोध-प्रबन्ध तैयार किया, एतदर्थ उन्हें खूब-खूब साधुवाद देता हूँ| उनके मार्गदर्शक डॉ. सागरमल जैन भी धन्यवाद के अधिकारी हैं, जिन्होंने उनको सुचारु मार्गदर्शन देकर उनका यह कार्य सुगम बनवाया। साध्वीजी की यह शोध-स्वाध्याय यात्रा यहीं सीमित न रहकर खूब आगे बढ़ती रहे और ऐसे अनेक विषयों पर वह स्वाध्याय व शोध करती हुई खुद की आत्मिक उन्नति साधे और जिन-प्रवचन का प्रकाश सर्वत्र फैलाती रहे- ऐसी मंगलकामना एवं शुभाशीष देता हूँ। आचार्य विनयशीलचन्द्रसूरि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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