Book Title: Jain Darshan aur Sanskruti Parishad
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Mohanlal Banthiya

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Page 10
________________ कार्यक्रम के अनन्तर ३ शोष लेख पढ़े गये : विषय १-मायो का एकीकरण -श्री रामचन्द्रजी जेन, एडवोकेट २-अजेन न्याय को जैन दर्शन की देन -श्री अनन्तलाल कर ३-बाला व पुद्गल की वास्तविकता (अंग्रेजी) -मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी 'द्वितीय' लेखों के वाचनोपरान्त बीच-बीच में प्रश्नोत्तर मी चलाए गए। उपस्थित जनसमूह कार्यक्रम में काफी उत्साह दिखा रहे थे। बड़े शांत वातावरण में सभी दत्तचित्त हो भुताराधना का लाभ ले रहे थे। मध्यान्हकालीन गोष्ठी मध्यान्ह में पुनः आचार्यश्री के सान्निध्य में एक गोष्ठी रखी गई। कार्यक्रम का प्रारम्भ आचार्यप्रवर के मंगलसूत्र के साथ हुआ। उक्त अवसर पर ३ शोधपूर्ण लेखों का पठन हुआ:१-श्रमण संस्कृति का हार्द -श्री एल० के० भारतीय २-जीवन की आवश्यकताओं की -साध्वीश्री कनकप्रभाजी पूर्ति करने वाले वृक्ष ३-उपनिषदों का श्रमण संस्कृति -मुनिभी नथमलजी पर प्रभाव (बाचक-श्री मोहनलाल बांठिया) लेखों के वाचन के पश्चात् कई प्रश्नोत्तर चलाए गये। मुनिश्री नथमलजी ने उक्त विषय को अपने लेख में बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रतिपादन किया है, जिसके आधार पर कई ऐतिहासिक प्रमाण हमें नवीनता के रूप में प्राप्त हुए हैं। लेख की भाषा-शेली अत्यन्त प्राञ्जल एवं शोध पूर्ण है। इस प्रकार अन्य विद्वानों ने भी अपने लेख में कई नवीन बातों का दिग्दर्शन करवाया है जो बड़ी ही महत्वपूर्ण है। साध्वीश्री ने अपने लेख में वृक्ष के आधार पर आवश्यकताओं की पूर्ति का वर्णन अत्यन्त शोषपूर्ण ढंग से किया है। आज भी कई ऐसे स्थान मौजूद हैं जहाँ इस पकार के वृक्ष पाए जाते हैं। प्रकृति की अनोखी देन का इस लेख में बहुत ही सुन्दर ढंग से चित्रण किया गया है। रात्रिकालीन गोष्ठी रात्रि में पुनः आचार्यश्री के सान्निध्य में भाषण गोष्ठी रखी गई विद्वानों व साधु-सन्त्रों के अतिरिक्त काफी संख्या में भाई-बहिन भी उपस्थित थे। कार्यक्रम बड़े ही शान्त वातावरण में प्रारम्भ हुआ।

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