Book Title: Jain Darshan Author(s): Lalaram Shastri Publisher: Mallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon View full book textPage 5
________________ . . . . 1 प्रकाशकीय-निवेदन ..श्री १०८ मुनि मल्लिसागर दि० जैन प्रन्थमाला का यह १७ वां पुष्प है। यह नवीन कृति विद्वद्वरेण्य पूज्य धर्मरत्न पं० लालारामजी शास्त्री की है। धर्मरत्नजी कीअगाध विद्वत्ता, कार्यदाक्षिण्य एवं अनुभवशीलता से जैन. समाज भली भांति परिचित है। आपने ही सर्व प्रथम बडे २ संस्कृत काव्य एवं पुराण प्रन्थों की टीकाए सरल सुबोध हिन्दी भाषा में करके जन साधारण के : लिये धर्मका मार्ग प्रदर्शित किया था । अथवा यों कहना चहिये कि धर्मग्रंथों के स्वाध्याय की प्रवृत्ति का मूल स्रोत आप ही हैं । आपने हमारी प्रार्थना,को, हृदयंगम करके ग्रंथमाला की तरफ से आपकी लिखी इस नवीन कृतिको प्रकाशित करने की अनुमति देकर जो उदारता प्रकट की उसके लिये ग्रंथमाला समिति आपकी अतीव आभारी है। __ जैनधर्म के संबंध में इसके पहिले भी अनेक विद्वान् लेखकों ने पुस्तकें लिखी हैं । उस दिशा में यह भी एक सुन्दर प्रयास है। अत्यन्त पुरातन अनादि होने के साथ २ सर्वतोभद्र होना जैन धर्म की।अपनी एक विशेषता है । धर्म की सम्यक्-श्रद्धा, ज्ञान एवं आचरण में ही चराचर जगत् का कल्याण निहित है। आज के इस लोमहर्पक युगमें, जबकि संसार हिंसा और परिग्रहवाद के जालमें फंसकर विनाश की ओर तीव्र गतिसे जा रहा है जैन . .Page Navigation
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