Book Title: Jagat Karta Kaun Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 5
________________ एविडन्स से चलता है। जिसको परम पूज्य दादाश्री 'व्यवस्थित शक्ति' कहते हैं। संपादकीय अनादि काल से जगत की वास्तविकता जानने का मनुष्य का प्रयत्न है मगर वह सही जान नहीं पाया। मुख्यत: वास्तविकता में मैं कौन हूँ, इस जगत को चलानेवाला कौन है तथा इस जगत का रचयिता कौन है, यह जानना है। प्रस्तुत संकलन में सच्चा कर्ता कौन है, यह रहस्य खुल्ला किया गया है। जगत में कोई भी स्वतंत्र कर्ता नहीं है मगर सब नैमितिक कर्ता है, सभी निमित्त है । गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था कि हे अर्जुन! तु इस युद्ध में निमित्त मात्र है, तु युद्ध का कर्ता नहीं है। परम पूज्य दादाश्री ने अनेक दृष्टांत देकर नैमित्तिक कर्ता का सिद्धांत समझाया हैं। एक कप चाय बनानी हो तो? कोई बोलेगा, मैंने चाय बनायी... मगर वास्तविकता में देखने जाये तो पानी, चीनी, चाय की पत्ती, दूध, बर्तन, स्टव, दियासलाई, कप, कितनी सारी चीजें हो तब एक कप चाय बनेगी। तो किसने चा बनाई?Only Scientific Circumstantial Evidences (वैज्ञानिक सांयोगिक प्रमाण) से हुआ। यह तो अज्ञानता से, भ्रांति से अहंकार करता है कि मैंने किया। मगर सारे संयोग की वजह से कोई भी कार्य होता है। आम तौर पर अच्छा हुआ तो 'मैंने किया' मान लेता है और बुरा हुआ तो दूसरे पर आक्षेप देता है कि इसने बिगाड़ दिया।' नहीं तो मेरी ग्रहदशा बिगड़ गई है' बोलेगा या तो भगवान ने किया ऐसा भी आक्षेप दे देता है। यह सब रोंग बिलिफें हैं। भगवान क्या पक्षपात करनेवाला है की आपका नुकशान करे? यह दुनिया किसने बनायी ? अगर बनानेवाला होगा तो उसको किसने बनाया ? फिर उसको भी किसने बनाया? याने उसका अंत ही नहीं है। और दूसरा यह भी प्रश्न उपस्थित होता है कि. दनिया उसको बनानी ही थी, तो फिर ऐसी कैसी दुनिया बनाई कि जिसमें सभी दु:खी हैं ? किसी को भी सुख नहीं है ? उसकी मज़ा और अपनी सजा, यह कैसा न्याय ?! इस विज्ञान ने साबित किया है कि विश्व में शाश्वत तत्त्व है। शाश्वत यानी जिसकी उत्पत्ति नहीं और जिसका विनाश भी नहीं यानी अनादिअनंत । अपने भीतरवाला आत्मा भी शाश्वत हैं। यह जगत किसी ने नहीं बनाया, उसका नाश भी नहीं है। यह जगत था, है और रहेगा। उसे बनाने की कहाँ जरूरत है ? यह विश्व स्वयंभू है और स्वयं संचालित है। भगवान ने तो इसमें कुछ नहीं किया, वह तो ज्ञाता-द्रष्टा-परमानंदी है। इस काल में कर्ता संबंधी का सिद्धांत पहली बार विश्व को यथार्थ स्वरूप में परम पूज्य दादा भगवान ने दिया है और वह यह है कि इस दुनिया में कोई स्वतंत्र कर्ता नहीं है। इस दुनिया को रचनेवाला या चलानेवाला कोई भी नहीं है। यह जगत चलता है वह सायंटिफिक सरकमस्टेन्शियल प्रस्तुत पुस्तिका में कर्ता का रहस्य परम पूज्य दादाश्री की सादी, सरल भाषा में हृदय में उतर जाये, इस तरह से समझाया गया है। - डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंदPage Navigation
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