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जगत कर्ता कौन?
जगत कर्ता कौन?
को भी नहीं है। जब उसका बन्द हो जाएगा तो मालूम हो कि अपनी खुद की शक्ति नहीं थी। उसमें डॉक्टर की ज़रूरत पड़ती है।
प्रश्नकर्ता : मैं ऐसा समझता हूँ कि दूसरी शक्ति जो चलाती है, वह ग्रहमान शक्ति है?
दादाश्री : ये सब पार्लियामेन्टवाली शक्ति चलाती है। आत्मा की हाज़िरी से ये पार्लियामेन्ट (अपने भीतर की संसद) चल रही है। पार्लियामेन्ट में उसका केस (मकदमा) जाता है कि, 'इस आदमी के हाथ से नैमित्तिक कर्म ऐसा हो गया है।' फिर पार्लियामेन्ट में उसका केस चलता है। पार्लियामेन्ट जो फैसला करती है, वैसा उसको फल मिलता है।
हकीकत में ग्रहमान शक्ति चलाती है, ये बात भी सही नहीं है। मगर जो शक्ति चलाती है, वो तो दूसरी शक्ति है। ग्रहमान तो उस शक्ति के अधिकार से चलता है। पार्लियामेन्ट से जैसे आर्डर order (आदेश) होता है, वैसे ही इधर कलेक्टर (जिलाधिकारी) काम करता है, वैसा ही वो सब ग्रह काम करते हैं। देखो न, हमारे सब ग्रह चले गए हैं, इसलिए हमारे यहाँ ग्रहों की सर्विस (सेवा) ही नहीं है। फिर हमको कोई ग्रह स्पर्श नहीं करते, मगर वो शक्ति हमको स्पर्श करती है। ग्रह का हमारे पर अधिकार नहीं है। हम पर उस दुसरी शक्ति का डिरेक्ट (सीधा) अधिकार है, बीच में इन ग्रहों का अधिकार नहीं है। आपके अंदर, सबके अंदर ग्रह रहते हैं। हमें कोई ग्रह है ही नहीं। हमको दुराग्रह नहीं, मताग्रह नहीं, हठाग्रह नहीं, कदाग्रह नहीं। हमको नव ग्रह में से कोई ग्रह नहीं रहता। हम पर सभी ग्रह राजी रहते हैं। वो सब हमारे साथ मित्र के माफिक रहते हैं।
डेबिट (बुरा फल) नहीं होती है। उधर बहुत इन्द्रियसुख है, मगर सनातन सुख नहीं है।
प्रश्नकर्ता : हमको तो सच्चा सुख चाहिए?
दादाश्री : सच्चा सुख तो, Self realization (आत्मसाक्षात्कार) हो जाए तब मिलता है, सनातन सुख मिलता है।
आप क्या कर सकते हो ? आप सुबह में नींद में से उठते हैं, फिर क्या क्या करते हैं?
प्रश्नकर्ता : उठने के बाद नहाना, नाश्ता-पानी फिर सब कामकाज़ करना ही पड़ता है न?
दादाश्री : तो वो सब काम सारा दिन आप ही करते हैं? प्रश्नकर्ता : हाँ, करना तो पड़ेगा ही ना? दादाश्री : नहीं, आप करते हो कि करना पड़ता है? प्रश्नकर्ता : मैं ही करता हूँ।
दादाश्री : मगर आप ही करते हैं कि दूसरा कोई करवाता है आपके पास?
प्रश्नकर्ता : कोई नहीं करवाता।
दादाश्री : तो आप ही करते हो? तो कभी तबीयत खराब हो जाए तो संडास बंद हो जाता है, तो फिर आप कर सकते हो?
प्रश्नकर्ता : सब ग्रह, तारा ये क्या हैं?
प्रश्नकर्ता : वो तो शरीर की चीज़ है और शरीर पर उतना कंट्रोल (नियंत्रण) रहना बहुत मुश्किल चीज़ है।
दादाश्री : शरीर पर कंट्रोल नहीं है? चलो जाने दो, मगर नींद कभी नहीं आती तो आप प्रयत्न करते हैं तो नींद आ जाती है?
दादाश्री : वो सब देवलोक हैं। उसको ज्योतिष्क देव बोला जाता है। देवगति में सारी जिन्दगी क्रेडिट (अच्छा फल) ही मिलती है, उधर