Book Title: Jagat Karta Kaun Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 9
________________ जगत कर्ता कौन? जगत कर्ता कौन? दादाश्री : तो बुरा किसका है? प्रश्नकर्ता : वो अपने मन में ऐसी शंका आती है इसलिए ऐसा मानने का होता है। दादाश्री : देखो, भगवान किधर रहते हैं वो आप जानते नहीं, भगवान क्या करते हैं वो आप जानते नहीं ओर आप बोलते हैं कि भगवान की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। ये सब पत्ते हिलते हैं, वो क्या सब भगवान की इच्छा के विरुद्ध ही हिलते हैं? भगवान को ऐसी कोई इच्छा नहीं हैं। इच्छावाले को भगवान ही नहीं बोला जाता। भगवान निरीच्छक रहते है। हम 'ज्ञानी पुरुष' भी निरीच्छक हैं तो भगवान तो कैसे निरीच्छक होंगे! भगवान की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, वो बात आपके लिए सच है और दुनिया के लिए भी सच है। मगर उससे आगे जाएँगे तो वहाँ ये सब बातें गलत साबित होंगी। सच्ची बात तो कुछ और ही है। वो सच्ची बात पस्तकों में नहीं समा सकती। वो तो अवर्णनीय है, अव्यक्त है। ये सब लोग क्या बोलते हैं? पैसा कमाया तो हमने कमाया और नुकसान हुआ तो भगवान ने कर दिया, ऐसा बोलते हैं। नुकसान के लिए ऐसा नहीं बोलते है कि 'मैंने नुकसान किया है।''भगवान ने हमारा बिगाड़ा, हमारा भागीदार अच्छा नहीं,' ऐसा बोलते हैं। नहीं तो बोलेंगे, 'हमारे ग्रह अच्छे नहीं हैं, हमारे लड़के की शादी की तो बहु हमारे यहाँ आई, उस दिन से हम सब दु:खी दु:खी हो गए, उसके कदम अच्छे नहीं है।' भी ऐसे बोलते हैं कि भगवान ने हमको प्रेरणा दी है। भगवान जो चोरी करने की प्रेरणा करता हो तो वो भगवान हो ही नहीं सकता। दान देने की प्रेरणा करता है तो वो भगवान नहीं हो सकता। क्या चोरी करने की प्रेरणा, दान करने की प्रेरणा करता है वो भगवान बोला जाता है? कराता है वो भगवान बोला जाता है? पर लोगों ने भगवान को प्रेरक कहा। लोगों ने तो तरह-तरह का भगवान को कहा। किसी ने कर्म का फल देनेवाला कहा। कर्म करता हूँ मैं और फल भगवान दे? नहीं तो, अच्छा किया तो भगवान ने किया और बुरा किया तो भी भगवान ने किया, ऐसा बोल दो। प्रश्नकर्ता : मगर मैं ऐसे कहता हूँ कि अच्छा तो भगवान कराता है और बुरा शैतान कराता है। दादाश्री : कोई शैतान दुनिया में है ही नहीं। दो प्रकार की बुद्धि होती है। एक सद्बुद्धि होती है और एक कुबुद्धि होती है। कुबुद्धि को शैतान बोलते हैं और सद्बुद्धि को भगवान बोलते है। प्रश्नकर्ता : बिलकुल ठीक बात है। कितने कितने आक्षेप करते हैं! फिर दुबारा मनुष्य का जन्म भी नहीं मिले ऐसा आक्षेप करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। किसी के ऊपर आक्षेप नहीं होना चाहिए। किसी को दु:ख नहीं होना चाहिए। पुण्य का उदय होता है, तब आप कुछ भी करो तो अच्छा-अच्छा होगा ही और पाप का उदय आए तब अच्छा करो तो भी खराब हो जाएगा। दादाश्री : हाँ, भगवान कुछ करता नहीं है। भगवान तो वीतराग है। भगवान इसमें हाथ ही डालता नहीं। सिर्फ उसकी हाज़िरी से सब चल रहा है। वो हाज़िर नहीं होता तो नहीं चलता। इस शरीर में उसकी हाज़िरी (presence) है, तो ये सब चल रहा है। वो कुछ नहीं करता। वो तो light (प्रकाश) ही देता है। जिसको चोरी करना है उसको भी प्रकाश देता है और जिसको दान देने का है उसको भी प्रकाश देता है। भगवान दूसरा कुछ नहीं करता है। भगवान, इच्छाशक्तिवाला? हमको किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं। हमने कोई चीज़ की इच्छा भगवान ऐसा प्रेरक नहीं होता। जो भगवान प्रेरक हों तो चोर लोगPage Navigation
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