Book Title: Ishu Khrist Par Jain Dharm Ka Prabhav Author(s): Bhushan Shah Publisher: Mission Jainatva Jagaran View full book textPage 3
________________ 卐 महात्मा ईसा (प्रसिद्ध रुसी विद्वान् डॉ. नोतोविच द्वारा लिखित Unknown Life Of Jesus श्री सावरकर - रचित 'मराठी - ख्रिस्त-परिचय' श्री नागेन्द्र-नाथ बसु सम्पादित 'हिन्दी विश्वकोष, ३ भाग'; पं० सुन्दरलाल लिखित 'ईसा और ईसाई धर्म' तथा मई सन १९३१ के बाम्बे समाचारपत्र के आधार पर लिखित ।) यह संसार सत् और असत् के नित्यद्वन्द्व से घिरा है । यहाँ बुराई ओर अच्छाई का शाश्वत संघर्ष छिडा हुआ है । कर्म परिणाम से कभी लम्बे समय के पश्चात् कोई एक व्यक्ति असाधारण कृतित्व का सामर्थ्य लेकर विश्व में आता है ओर युगों से चली आती हुई कुरुढियों तथा अन्धविश्वास पर अपने अनुभूत, दृष्ट एवं सन्तुलित विवेक के छेनी हथोडे से चोट करता है । वह चोट विध्वंसक नहीं अपितु सर्जनात्मक होती है, कलाकार की टांकी के समान । उसमें नवजागरण तथा सत्य के उन्मेष की भावना निहित होती है । इस प्रकार असत्पक्ष के निराकरण का आग्रह रखने वाली उन भावनाओं के प्रतिपादन के लिए आने वाले उस विशिष्ट व्यक्ति को जनसमुदाय संदेह और असूया की दृष्टि से देखता है I I अपने जन्मपूर्व से सामाजिक रुप में पालित - लालित उन रुढियों और परम्पराओं के कारण वह उस नवीनता को पचाने का सामर्थ्य अपने में नहीं पाता और अपनी कल्प पाचन शक्ति का दोष उस नवीन उपदेष्टा के मत्थे मढने का प्रयत्न कर अपने को उससे कहीं अधिक श्रेष्ठ तथा विवेकी जताने का दुर्बल प्रयत्न करता है । ऐसी परिस्थिति में जागरण की मशाल लेकर मार्गदर्शन करने वाला व्यक्ति उस रुडे समूह में एकाकी रह जाता है तथा उन समूहबद्व कोटि-कोटि अनर्गल प्रलापकों को सच्चाई की अमृत घूंट पिलाने के लिए भी असीम श्रम करता देखा जाता है । यह बात नहीं कि उसे अपने व्यक्तित्व की ऊर्जा से लोक को सम्भ्रम में डालने की महत्वाकांक्षा होती है, अपितु संसार अन्धगर्त से बचे और कल्याणमार्ग को > ३ 人Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16