Book Title: Ishu Khrist Par Jain Dharm Ka Prabhav Author(s): Bhushan Shah Publisher: Mission Jainatva Jagaran View full book textPage 6
________________ 95 अनुभव होता हो । अस्तु यद्यपि मेरे प्रबन्ध का विषय ईसा के दार्शनिक तत्त्वों के सम्बन्ध में उनकी भारतीयता और श्रमण-संस्कृति से प्रभावितता का निरुपण करना मात्र है तथापि यह सब उनकी जीवनी से पृथक् नहीं है, अतः संक्षेप में उनके जीवन-चरित के प्रसंग भी लिखने आवश्यक प्रतीत होते हैं । श्रमणसंस्कृति से स्नेहभाव रखने वालों के लिए ये निष्कर्ष निश्चय ही उपादेय होंगे । यरुशलम से ५० मील दक्षिण में स्थित एक छोटे पहाडी कस्बे नाजरथ में ईसा का जन्म हुआ । पिता यूसुफ बढई का काम करता था और बडी गरीबी में से होकर परिवार की गुजर चलती थी । ईसा की मां मरियम एक दयावती महिला थी । ईसा अपनी मां को घर के काम-काज में सहयोग करता रहता था जबकि उसका पिता काठ छोलने के अपने धन्धे में लगा रहता था । दयालुता, नम्रता, सेवापरायणता इत्यादि मानवीय गुण ईसा की जन्म जात संपदा थी । वे यहूदियों के सबसे बड़े मंदिर यरुशलम प्रायः जाते रहते थे । I अपने जन्म के बारहवें वर्ष में बालक ईसा को प्रथम बार यरुशलम जाने का अवसर प्राप्त हुआ । किसी बडे नगर अथवा लोगों की किसी भीड-भाड में सकुल धार्मिक स्थान को देखने का उसका यह प्रथम अवसर था । वहाँ मंदिर में दैवता को बलि चढाने के लिए बिकने आये हुए पशु बडी संख्या में एकत्रित थे और अपने लिए पुण्य बटोरने वाले, अन्य कई प्रकार की लालसा रखने वाले उन्हें गाजर- मूली के समान मोलभाव करके खरीद रहे थे, काट रहे थे और बिना किसी हिचक या जुगुप्सा के वध के कभी न समाप्त होने वाले व्यापार में लगे हुए थे । वहां जाने वाले के लिए यह दृश्य नवीन नहीं था, किन्तु ईसा के नरम दिल में धर्म के नाम पर किये जा रहे ईन अमानुषिक बर्बर अत्याचारों से एक मूक आह निकल गयी । अनेक प्रकार की शंकाओं से उसका हृदय कीलित हो उठा । I ओह, धर्म के नाम पर पुरोहितों ने कितना षड्यन्त्र रच रखा है ! कितना पाखण्ड मजहबी ख्यालों में विष के समान मचल रहा है ! ये गण्डे तावीज और गले - सडे रीति-रिवाज क्या धर्म कहे जा सकते हैं ! उस बालक के । हृदय में जिज्ञासा उत्पन्न हुई जो दर्शनशास्त्र की मूल प्रेरणा है । किन्तु बढई t > ६Page Navigation
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