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पाखंडों के विरोध में उन्होंने सात्विक साहस दिखाया था । जो
पथ भूल चुके थे उन्हें पथ दिखाने का प्रयत्न किया था । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का आग्रह किया था । यह सब सत्प्रयत्न उनके लिए अग्राह्य और भयप्रद था जो हिंसा, चोरी, मिथ्या, व्यभिचार और परिग्रह में आपाद - मस्तक डूबे हुए थे । जो तत्व अन्धकार में ही क्रियाशील रहते हैं वे प्रकाश का स्वागत कैसे कर सकते हैं ।
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ईसा मसीह ने पृथ्वी पर 'गाड्स किंगडम ऑन अर्थ' अर्थात् इश्वरीय राज्य जिसे भारतीय रामराज्य जैसे प्रतीक शब्द से जान सकते हैं, की कल्पना की थी | वह अपने जीवन में उसी के लिए सतत प्रयत्नशील रहे ।
जब उनसे किसी ने पूछा कि वह ईश्वरीय राज्य कब आयेगा तो ईसा प्रश्नकर्ता के सरलत्व पर मुस्करा उठे । उन्होंने स्पष्ट किया कि उस ईश्वरीय राज्य के आगमान के लिए कोई विशेष समय नहीं है । वह आजकल या परसों कभी भी आ सकता है । उसको बुलाने के लिए लोगों के हृदय में धर्म के मूल सिद्धान्त जिनमें अहिंसा, मैत्री, करुणा, उपकार, दान, दक्षिणता, अपरिग्रह और शौच इत्यादि सम्मिलित हैं, सक्रिय हो उठेंगे, उसी समय अपनी सम्पूर्ण सत्ता के साथ ईश्वरीय राज्य का प्रादुर्भाव होगा । उनके कथन का यह तात्पर्य था कि यदि आज ईश्वरीय राज्य के दर्शन नहीं हो रहे हैं तो इसमें हमारा ही दोष है । ठीक भी तो है कि जब तक बादलों की ओट रहेगी, सूर्य का बिम्ब विद्यमान होते हुए भी दृष्टिगोचर कैसे हो सकेगा ?
इस प्रकार महात्मा ईसा का उपदेश परमार्थ, प्रेम, सहयोग और अहिंसा सिखाता है । वह दूसरे के दोषों के देखने के स्थान पर आत्मनिरीक्षण का आग्रह करते हैं । उन्होंने अपने उपदेशों को छोटे-छोटे उदाहरणों, दृष्टान्तों और बोधगम्य विधाओं से सरल कर दिया हैं । वह कहते हैं – ‘पहले अपनी आंख का लट्ठा (पेड) निकालो, तब दूसरे की आंख का तिनका निकाल सकोगे ।' 'ऊंट के लिए सुई की आंख में से निकल जाना सभ्भव है, किन्तु दौलतमन्द के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश पाना कठिन है ।' स्पष्ट है कि उनको 'अपरिग्रह' से प्रेम था और अधिक। धनसंचय से उत्पन्न होने वाली बुराइयों से वे परिचित थे और
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