Book Title: Ishu Khrist Par Jain Dharm Ka Prabhav
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 11
________________ उन पुजारियों ने अधिकारियों को भय दिखाया कि यदि उन्होंने ईसा को दण्ड नहीं दिया तो विप्लव होने की आशंका है। निरुपाय अधिकारियों ने विवश होकर उन्हें क्रास पर कीलों से जड दिया, किन्तु ईसा निर्विकार थे। उस समय उन्होंने जो कुछ कहा उससे उनकी स्थित-प्रज्ञता झलकती है, राग-द्वेष से अतीत उनके समस्वभाव का परिचय मिलता है । वह कहते हैं-हे पिता, (ईश्वर) ईन्हें क्षमा कर देना कयोंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं । उनके मूल शब्द हैं 'तलिथ कुलोमी, एलोई एलोई लामा साषाक्थेन' क्षमा की अपार शक्ति से अनुप्राणित इन शब्दों को कहने वाले के अन्तरात्मा में भगवान महावीर के 'खम्मामि सव्व जीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे, के अनुवाक चल रहे हों तो क्या आश्चर्य है और ईसा के दो सहस्र वर्षों पश्चात् भारत में उत्पन्न महात्मा गांधी ने भी हत्यारे नाथुराम गोडसे के लिए क्षमादान कहा था । वस्तुतः जिसके हृदय में अहिंसा की शान्त स्रोतस्विनी प्रवहमान है वह क्षमादान करता ही है क्योंकि 'क्षमा वीरस्य भूषणम्'-क्षमा देना वीर का भूषण है। भगवान महावीर वीर हैं और अहिंसा का पालन करने वाला उस वीरता को धारण करता है । वह अपनी वीरता को हिंसा के रक्तकर्दम से पंकिल नहीं करता । इस प्रकार महात्मा ईसा को प्राणदण्ड दे दिया गया और सचाई के कण्ठ को निर्दयता से मरोड दिया गया । किन्तु सचाई तो कब्र से भी बोतली है, श्मसान की भस्म से भी उठ बैठती है। सचाई को जलाया नहीं जा सकता । उस विश्व-करुणा से सराबोर प्राणी के हृदय में जिस कील को ठोक दिया गया था, उसकी वेदना का ज्ञान जब संसार को हुआ तो उसके पास इसके सिवा दूसरा मार्ग नहीं रहा गया था कि वह प्रायश्चित के रुप में उसके उपदेशों और आदेशों को पालन करने का प्रयत्न करे और कहना नहीं होगा कि आज विश्व में ईसा के अनुयायियों की संख्या अनुपात में सर्वाधिक है। अभी हाल में की गयी जनगणना के अनुसार विश्व की जनसंख्या तीन अरब छह करोड अस्सी लाख है। इनमें मुसलमानों की संख्या ४३ करोड ७० लाख, कन्फ्यूसियनिस्टों की संख्या ३३ करोड ५० लाख, हिन्दुओं की ३४ करोड, बोद्धों की १३ करोड ५० लाख अथवा २६ करोड के बीच बताई जाती है । शेष एक-तिहाई संख्या ईसाइयों की है।

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