Book Title: Hum Aarya Hain Author(s): Bhadrasen Acharya Publisher: Jalimsinh Kothari View full book textPage 9
________________ [ ४ ] मनुष्य से पूछा था कि तुम कौन हो ? उस मनुष्य ने उत्तर दिया-"हिन्दू" । यह सुनकर ऋषि ने कहा-'भाई ! कामभ्रष्ट तो हुए ही थे, पर नाम-भ्रष्ट तो मत होवो !" आज ठीक यही दशा हमारी होरही है। हम जहां प्राय॑त्व को छोड़कर काम भ्रष्ट हो रहे हैं, वहां अपने को हिन्दू कह कर नाम भ्रष्ट भी होते जारहे हैं। आज यदि ऋषिवर यहां होते और उनको यह मालूम हो जाता कि जो उत्तर मैंने उस हिन्दू नामाभिमानी को दिया था, उसी उत्तर के अधिकारी आज मेरे अनुयायो भी बनते जारहे हैं, तो उनके आत्मा को कितना दारुण दुःख होता। कितने शोक की बात है कि जहां पहिले हमारे व्याख्यानों मेंआर्य, श्रार्य-जाति, आर्य-सभ्यता तथा आर्य-धर्म की गूंज हुमा करती थी, आज उन्हीं हमारे व्याख्यानों में हिन्दू, हिन्दू-जाति, हिन्दू-सभ्यता तथा हिन्दू-धर्म की गूंज सुनाई दे रही है। हमारे बड़े २ नेता तथा उपदेशक भी अपने व्याख्यानों तथा लेखों में हम हिन्दू, हमारी हिन्दु-जाति, हमारो हिन्दू-सभ्यता, हमारा हिन्दू-धर्म श्रादि कहते तथा लिखते हुए जरा भी नहीं सकुचाते, प्रत्युत बड़े गर्व से इन अवैदिक शब्दों को उच्चारण कर अपने को धन्य मान रहे हैं । इसका यदि आपने उदाहरण देखना हो तो श्रार्य-सभ्यता तथा विशुद्ध आर्य-धर्म के अद्वितीय प्रचारक भगवान् दयानन्द की पुण्यस्मृति में निकलने वाले उर्दू पत्र 'प्रकाश' के ऋषि अंक में देखें । गत दीपावली के उपर्युक्त अंक में पंजाब के प्रसिद्ध कार्यकर्ता तथा नेता श्री ला. देवीचन्दजी का एक लेख छपा है, जिसका शीर्षक है-"क्या हिन्दू-धर्म गैर तबलीगी है ?" और इस बात को सिद्ध करने के लिये कि हिन्दूPage Navigation
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