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[ ११ ] नाम की ही गूंज हुआ करती थी। उस समय ईसाई मुसलसान आदि सभी सम्प्रदायों के लोग हमारे व्याख्यानों में आते थे, और उनको प्रेम से सुनते थे, हमारे धार्मिक ग्रन्थों का स्वाध्याय करते थे। किन्तु जब से हम अपने को हिन्दू कहने लगे । हमारे व्याख्यानों तथा लेखों में हम हिन्दू, हमारा हिन्दु धर्म, हमारी हिन्दू सभ्यता आदि का ही बोल बाला होने लगा। हम यदि किसी विधर्मी की शुद्धि कर उमे वैदिक धम में भी प्रविष्ट करने लगे, तो समाचार पत्रों में हमने हिन्दुओं को खुश तथा प्रभावित करने के लिये यह छपाना प्रारम्भ कर दिया कि "अमुक
आर्यसमाज मन्दिर में अमुक व्यक्ति ने इसलाम मजहम को छोड़ कर "हिन्दूधर्म" ग्रहण किया” तब से ही हमारे ईमाई तथा मुसलमान भाइयों ने यह समझ लिया कि आय-समाज भी कोई सार्वभौम संस्था नहीं, अपितु यह भी बुतपरस्त हिन्दुओं का ही एक फिरका है। इस लिये उन्होंने हमारे व्याख्यानों का सुनना तथा हमारी धर्म पुस्तकों का स्वाध्याय करना भी छोड़ दिया और हम केवल मात्र हिन्दुओं के लिये हो रह गये, और वह भी स्वयं हिन्दु बन कर।
वाचक-वृन्द ! अब आप स्वयं ही विचार करें कि हमने अपने को हिन्दु कहकर कितनी क्षति उठाई है। हमारा तथा हमारे धर्म प्रचार का कितना हाम हुआ है। इसलिये आर्यपुरुषो ! मैं आपसे पुनः सविनय प्रार्थना करता हूँ कि यदि आप अपना सच्चा कल्याण चाहते हैं ? अपने प्यारे वैदिक धर्म को सार्वभौम बनाना चाहते हैं, तो आज से ही अपने को हिन्दू कहना छोड़ दो और अपने अन्दर से हिन्दूपन की जड़ को