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सर्वथा उखेड़ कर फेंक दो । अपने व्याख्यानों, उपदेशों तथा लेखों में हम हिन्दू, हमारी हिन्दू सभ्यता, हमारा हिन्दू धर्म आदि की रट लगाना छोड़ दो। अपने अन्दर सच्चे "आर्यत्व" को धारण करते हुए अपने को सदा आर्य नाम से ही सुशोभित करो ।
कई आर्य भाइयों का यह विचार है कि हम आर्य जाति को (जो कि अब हिन्दू जाति के नाम से पुकारी जाती है ) आर्य शब्द से संगठित नहीं कर सकते! क्योंकि वर्तमान आर्य जाति के बहुसंख्यक लोग आर्य शब्द की अपेक्षा हिन्दु शब्द को अधिक पसन्द करते हैं । इसी लिये हम धर्म और जातीय संगठन के पीछे हिन्दू शब्द का प्रयोग करते हैं । किन्तु मान्य आर्यबन्धुओं! यदि आप गम्भीरता पूर्वक विचार करेंगे तो अपने को हिन्दू कहने का यह कारण भी निस्सार ही प्रतीत होगा । इतना ही नहां प्रत्युत् मेरा तो यह दृढ़ विश्वास है कि यदि आर्य जाति का सच्चा संगठन हो सकता है तो आर्य शब्द द्वारा ही हो सकता है हिन्दू शब्द द्वारा कदापि नहीं । आर्य शब्द द्वारा किया गया संगठन ही मचा संगठन होगा । उसमें जीवन होगा, उत्साह होगा । और शक्ति होगी। जो कि हिन्दु नाम के संगठन में कभी भी नहीं हो सकती । हमारा यह कहना भी भूल है कि अधिकतर लोग आर्य की अपेक्षा हिन्दू कहलाना अधिक पसंद करते हैं । आज शिक्षितवर्ग अपने को हिन्दु की अपेक्षा आर्य कहलाना अधिक पसंद करता है और सनातन धर्मी विद्वान् भी अपने को कह रहे हैं। यहां तक कि काशी के पण्डितों ने तो आज - से कई वर्ष पहिले यह व्यवस्था दे दी है कि हम हिन्दू नहीं