Book Title: Hum Aarya Hain
Author(s): Bhadrasen Acharya
Publisher: Jalimsinh Kothari

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Page 22
________________ * यो३म * आर्यसमाज के नियम । १-सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सब का श्रादिमूल परमेश्वर है। २-ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्याय कारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी की उपासना करनी योग्य है। ३-वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना पढ़ाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परमधर्म है। ४-सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उग्रत रहना चाहिये। ५- सब काम धर्मानुसार अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिये । ६-संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना। ७- सब से प्रतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिये । ८-अविद्या का नाश और विद्या को वृद्धि करनी चाहिये । ९-प्रत्येक को अपनी ही उन्नति में संतुष्ट न रहना चाहिये किन्तु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये । १०-सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिये और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वन्त्र रहें।

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